आज से दो दिन रायगढ़ में रहेंगे सीएम साय.....चक्रधर समारोह का करेंगे शुभारंभ, हेमा मालिनी का होगा परफॉर्मेंस....

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय आज से दो दिनों के लिए रायगढ़ दौरे पर रहेंगे। इस दौरान वो रायगढ़ के रामलीला मैदान में आयोजित 39वें चक्रधर समारोह-2024 का शुभारंभ करेंगे। इस समारोह में अगले 10 दिनों तक कला और संस्कृति की नगरी रायगढ़ सांस्कृतिक रस में सराबोर रहेगी चक्रधर समारोह के 10 दिनों के इस आयोजन में स्थानीय कलाकारों से लेकर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों के कुल 62 इवेंट आयोजित हैं।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय आज शाम 5.30 बजे रायगढ़ के रामलीला मैदान समारोह का शुभारंभ करेंगे। देश के ख्यातिनाम कलाकार कार्यक्रम देने रायगढ़ पहुंचेंगे। हर साल इस आयोजन के लिए रायगढ़ में बड़ी तैयारियां की जाती हैं, जहां देश भर के कलाकार अपनी प्रस्तुति देने आते हैं।
पहले दिन बॉलीवुड की अभिनेत्री और शास्त्रीय नृत्यांगना पद्मश्री हेमा मालिनी प्रसिद्ध राधा रास बिहारी का मंचन करेंगी। रायगढ़ कथक घराने के वरिष्ठ कलाकार और इस वर्ष पद्मश्री से नवाजे गए रामलाल को कथक घुंघरू सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। वहीं भूपेंद्र बरेठ और साथी कलाकारों कथक नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी। इसके दर्शकों को छत्तीसगढ़ की माटी के लोक विधा करमा नृत्य का आनंद लेने का अवसर मिलेगा। जशपुर के मनियर भगत और साथी के करमा नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी।
चक्रधर समारोह के लिए मंच और पंडाल तैयार है। यहां करीब 29 हजार स्क्वायर फीट की बैठक व्यवस्था बनाई गई है। मुख्य डोम पहले की तुलना में बड़ा बनाया गया है। चक्रधर समारोह का अपना ऐतिहासिक महत्व भी है। आजादी के पहले रायगढ़ एक स्वतंत्र रियासत थी, जहां सांस्कृतिक एवं साहित्यिक गतिविधियों का फैलाव बड़े पैमाने पर था। प्रसिद्ध संगीतज्ञ कुमार गंधर्व और हिंदी के पहले छायावादी कवि मधुकर पांडेय रायगढ़ से ही थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से जब रियासतों के भारत में विलीनीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई तो रायगढ़ के राजा चक्रधर विलीनीकरण के सहमतिपत्र पर हस्ताक्षर करने वाले पहले राजा थे।
राजा चक्रधर एक कुशल तबला वादक एवं संगीत व नृत्य में भी निपुण थे। उनके प्रयासों और प्रोत्साहन के फलस्वरूप ही यहां संगीत तथा नृत्य की नई शैली विकसित हुई। स्वतंत्रता पूर्व से ही गणेशोत्सव के समय यहां सांस्कृतिक आयोजन की एक समृद्ध परंपरा विकसित हुई, जिसने धीरे-धीरे एक बड़े आयोजन का रूप ले लिया।
यह आयोजन इतना वृहद था कि राजा चक्रधर जी के देहावसान के बाद उनकी याद में “चक्रधर समारोह” के नाम से यहां के संस्कृतिकर्मियों तथा कलासाधकों ने वर्ष 1985 से दस दिवसीय सांस्कृतिक उत्सव की शुरुआत की जिसके माध्यम से देश के सांस्कृतिक मानचित्र में छत्तीसगढ़ को स्थापित करने में बड़ी मदद मिली।