दोस्ती और जान-पहचान में फर्क होता है:ऐसी दोस्ती पर गौर करें, परखें और फिर दोस्ती करें
दोस्ती और जान-पहचान में फर्क होता है:ऐसी दोस्ती पर गौर करें, परखें और फिर दोस्ती करें

दोस्त, यानी कि एक ऐसा साथी जिस पर आप विश्वास करते हैं कि वो आपसे जो भी कहेगा सच होगा। आपको जो भी सलाह देगा, सही देगा। कभी मुश्किल आई तो विश्वास होगा कि वो आपका साथ देगा। और ये विश्वास पाने में एक अरसा लग जाता है। लेकिन आजकल युवा कल मिले लोगों पर विश्वास कर बैठते हैं। उन्हें सबसे क़रीबी दोस्त बना लेते हैं। नए दोस्त बनाना सही है, लेकिन सब क़रीबी दोस्त नहीं हो सकते। ख़ासतौर पर जिसे जाने छह महीने भी न हुए हों। और ये जल्दबाज़ी कई बार हादसों या धोखाधड़ी में बदल जाती है। आज आमुख में हम इसी तरह की दोस्ती के बारे में बात करेंगे।
हमें लोग अलग-अलग ढंग से मिलते हैं
कभी किसी दोस्त के माध्यम से नए लोग जुड़ते हैं, तो कभी कोई परिचित ही दोस्त बन जाता है। कई बार ऐसे लोगों को भी दोस्त बना लेते हैं जिनसे आपका कोई ताल्लुक तक नहीं, जैसे कि किसी दोस्त के भाई का दोस्त। काम के सिलसिले में भी मुलाक़ात होती है जो जबानी दोस्ती में बदल सकती है।
सबसे अहम सवाल... दोस्त के बारे में कितना जानते हैं?
नए दोस्त बनाते समय उसका पारिवारिक और शैक्षिक बैकग्राउंड ज़रूर जांच लें। वह कहां से है और कहां से पढ़ाई की है, इसके बार में पता होना चाहिए। वह यहां अकेला रहता/रहती है या परिवार साथ है, उसके परिवार से भी मिलें। अगर कामकाजी है तो कहां काम करता/करती है। अगर वह ये सब बताने से कतराए या पूछने पर बात बदल दे तो कहीं न कहीं वह अपनी पहचान छुपा रहा/रही है। ऐसे में दूरी बना लेना ही बेहतर होगा।
अगर जानते हैं तो... आपका परिवार कितना जानता है?
आजकल युवा दोस्तों के साथ बाहर जाते हैं, देर रात तक पॉर्टी करते हैं। जिस दोस्त के साथ आप जा रहे हैं, क्या उसकी जानकारी आपके परिवार को है? क्या वो उससे कभी मिले हैं? आपके लिए उसके क्या इरादे हैं ये आप नहीं जानते। हो सकता है कि अगर आप दोनों के साथ कोई हादसा हो जाए तो आपकी मदद करने के बजाय वो आपको सड़क पर यूं ही छोड़कर अपने घर चला जाए। या फिर हो सकता है कि वह अपना दोष आप पर डाल दे। पुराने या नए दोस्त, जिनसे आप मिलते रहते हैं, समय बिताते हैं या अक्सर जिनके साथ बाहर जाते हैं, उनकी जानकारी परिवार को होना चाहिए। उन्हें परिवार से मिलाएं। अगर काम के सिलसिले में जा रहे हैं तो इसके बारे में परिवार को बताएं ताकि आप कहां हैं और किसके साथ हैं, उन्हें पता रहे।
दो दिन में... विश्वास कैसे संभव है?
युवा बातों में जल्दी फंस जाते हैं। किसी शख़्स ने उनके प्रति चिंता और मदद का हाथ बढ़ाया नहीं कि वो उसको अपना शुभचिंतक समझ बैठते हैं। वो आपको सुनता है इसलिए दोस्त समझकर बातों-बातों में अपनी निजी बातें और परेशानियां बता देते हैं। पर ज़रूरी नहीं है कि वह इसलिए सुन रहा है क्योंकि उसे आपकी चिंता है। किसी पर भी आंखें बंद करके भरोसा करने और उसे अपने परिवार की व्यक्तिगत बातें बताने से पहले रुककर एक बार सोचें कि जिसे आप अपना दोस्त समझते हैं वो इस जानकारी को आपको चोट पहुंचाने के लिए तो इस्तेमाल नहीं करेगा? जब तक पूरा भरोसा न हो, किसी के साथ सारी बातें साझा न करें। अगर वो ख़ुद भी आपसे आपके परिवार और निजी बातें पूछता है और बार-बार पूछता है तो वह विश्वास के योग्य नहीं है।
साथ जाने से पहले... दो बार ज़रूर सोचें
बच्चों में प्रसिद्ध होने या जल्दी पैसे कमाने की होड़ बढ़ गई है। उन्हें लगता है कि कुछ छोटे-छोटे काम करके वो पैसे कमा सकते हैं। ऐसे में किसी अनजान व्यक्ति की बातों में आना मुश्किल नहीं है। ख़ासतौर पर जब एक ही प्रोफेशन के हों। जब कोई अनजान शख़्स किसी इवेंट या शो में काम के बदले कुछ रकम देने का वादा करता है तो बिना सोचे-समझे युवा उसके साथ चले जाते हैं। कई बार सिर्फ़ कहीं घूमने ही निकल जाते हैं।
यहां बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों को भी ध्यान देना चाहिए कि कमज़ोर आर्थिक स्थिति का असर कहीं बच्चे पर तो नहीं पड़ रहा। अगर आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और बच्चा अभी से कॅरियर बनाना चाहता है तो उसके माध्यम सही हो इसका भी ध्यान रखें। किससे मिलता है और किससे बात होती, उससे जानकारी लेते रहें।