मोदी सरकार 3.0 में सभी चाह रहे मनचाहा मंत्रालय, नीतीश-नायडू की प्रेशर पॉलिटिक्स का क्या रास्ता निकालेगी BJP?
सूत्रों की मानें तो पंचायती राज्य और ग्रामीण विकास जैसे मंत्रालय जेडीयू को दिए जा सकते हैं. नागरिक उड्डयन, स्टील जैसे मंत्रालय टीडीपी को मिल सकते हैं. भारी उद्योग शिवसेना को मिल सकता है. महत्वपूर्ण मंत्रालयों जैसे वित्त, रक्षा में सहयोगियों को राज्य मंत्री पद दिया जा सकता है.

नई दिल्ली: मोदी 3.0 में सहयोगी दलों की भूमिका महत्वपूर्ण है. भाजपा अपने सहयोगी दलों की बदौलत ही नई सरकार बनाने जा रही है. एनडीए के सहयोगी दलों में टीडीपी, जदयू, शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी राम विलास शामिल हैं. एनडीए में केवल इन चार पार्टियों को मिलाकर 40 सांसद हैं. सूत्रों की मानें तो टीडीपी और जदयू अपने लिए मनपसंद मंत्रालय चाहती हैं. इसमें बात ये भी उठ रही है कि सहयोगियों को हर चार सांसद पर एक मंत्री पद दिया जा सकता है. इस लिहाज से 16 सांसदों वाली टीडीपी चार, 12 सांसदों वाली जदयू 3, 7 सांसदों वाली शिवसेना और पांच सांसदों वाली चिराग पासवान की पार्टी को दो-दो मंत्रालयों की उम्मीद है.
सूत्र यह भी बता रहे हैं कि चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी स्पीकर पद भी चाहती है. हालांकि, इसके लिए बीजेपी तैयार नहीं हो रही है. ज्यादा जोर देने पर डिप्टी स्पीकर का पद टीडीपी को मिल सकता है. जदयू के पास पहले से ही राज्यसभा डिप्टी चेयरमैन का पद है. टीडीपी सूत्रों की मानें तो अब तक ऐसी कोई औपचारिक मांग बीजेपी आलाकमान के सामने नहीं रखी गई है. टीडीपी सुप्रीमो की सबसे बड़ी मांग हो सकती है राज्य के लिए विशेष वित्तीय पैकेज, अममरावती में नई राजधानी बसाने के लिए विशष पैकेज और उनकी लंबे समय से लंबित मांग पोलावरम डैम का निर्माण. इसलिए जलशक्ति मंत्रालय की मांग भी की जा सकती है.
अब तक चलता रहा है भाजपा का मन
अभी तक मोदी सरकार के दो कार्यकाल में सहयोगी दलों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व मिलता रहा. अगर मोदी सरकार के दो कार्यकाल को देखें तो सहयोगियों को सांकेतिक प्रतिनिधित्व में नागरिक उड्डयन, भारी उद्योग, खाद्य प्रसंस्करण, स्टील और खाद्य, जन वितरण और उपभोक्ता मामले जैसे मंत्रालय दिए गए. खाद्य, जन वितरण एवं उपभोक्ता मामले का मंत्रालय 2014 में राम विलास पासवान के पास था, नागरिक उड्डयन टीडीपी के पास रहा, भारी उद्योग एवं पब्लिक एंटरप्राइज शिवसेना के पास रहा. खाद्य प्रसंस्करण, अकाली दल और बाद में पशुपति पारस के पास रहा. स्टील जेडीयू के पास रहा. वाजपेयी सरकार में उद्योग, पेट्रोलियम, रसायन एवं उर्वरक, कानून एवं विधि, स्वास्थ्य, सड़क परिवहन, वन एवं पर्यावरण, स्टील एंड माइन्स, रेलवे, वाणिज्य और यहां तक कि रक्षा मंत्रालय भी सहयोगियों के पास रहा था.
अब भाजपा को माननी पड़ेंगी बातें
जाहिर है कि गठबंधन के खेल में अब बीजेपी को सहयोगियों की कुछ मांगे माननी पड़ेंगी. मोदी 1.0 और मोदी 2.0 में सहयोगियों की संख्या के अनुपात में मंत्री पद देने के बजाए केवल सांकेतिक नुमाइंदगी दी गई. जेडीयू ने 2019 में संख्या के हिसाब से मंत्रिमंडल में जगह की मांग की थी और ऐसा न होने पर सरकार में शामिल नहीं हुई थी और अब बदली परिस्थितियों में बीजेपी को संख्या के हिसाब से ही मंत्री बनाने होंगे. लेकिन साफ ये भी है कि कुछ शर्तों पर बीजेपी शायद ही समझौता करे.
भाजपा अपने पास क्या-क्या रख सकती है?
जानकारों के मुताबिक, सीसीएस के चार मंत्रालयों- रक्षा, वित्त, गृह और विदेश में सहयोगी को जगह मिलने के आसार नहीं हैं. रेलवे, सड़क परिवहन आदि में बड़े सुधार किए गए हैं और बीजेपी इन्हें सहयोगियों को देकर सुधार की रफ्तार धीमी नहीं करना चाहेगी. रेलवे जिस किसी भी सरकार में सहयोगियों के पास रहा, तब लोकलुभावन नीतियों के चलते उसका बंटाधार हुआ. बड़ी मुश्किल से उसे पटरी पर लाया जा रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर, गरीब कल्याण, युवा से जुड़े और कृषि मंत्रालयों भी बीजेपी अपने पास ही रखना चाहेगी. यह पीएम मोदी की बताई गईं चार जातियों- गरीब, महिला, युवा और किसान के लिए योजनाओं को लागू करने के लिए अहम कड़ी हैं.