गोरखपुर में योगी की अग्निपरीक्षा, रविकिशन के स्टारडम को इस अभिनेत्री की चुनौती

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गढ़ और घर की सीट गोरखपुर को जीतना बीजेपी के लिए बहुत मायने रखता है. यहां भी लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में 1 जून को मतदान होना है. सत्तारूढ़ भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद और अभिनेता से नेता बने रवि किशन शुक्ला को फिर से मैदान में उतारा है. समाजवादी पार्टी की ओर से मोर्चा संभाल रही हैं काजल निषाद. काजल भी एक भोजपुरी फिल्म अभिनेत्री हैं. पर गोरखपुर में जातियां इस तरह गोलबंद हो रही हैं कि यहां का मुकाबला बहुत टफ हो गया है. गोरखपुर में हुए विकास कार्य और योगी आदित्यनाथ की छवि के चलते कुछ दिनों पहले तक ऐसा लग रहा था कि यहां की सीट पर बीजेपी की जीत पक्की है. पर निषाद-यादव और मुस्लिम एकता ने ऐसा रंग दिखाया है कि राजनीतिक विश्लेषकों को अब आशंका है कि कहीं 2018 का इतिहास फिर से गोरखपुर में जनता दोहरा न दे.
गोरखपुर की राजनीति को समझने वाले लोग जानते हैं कि गोरखपुर की सीट पर निषाद वोटों की कितनी महत्ता रही है. 2018 के उपचुनाव में हार का कारण निषाद वोट ही बने थे. यही कारण रहा है कि निषादों के नेता संजय निषाद को एनडीए में लाया गया. उन्हें मंत्रिमंडल में भी जगह दी गई. इसके साथ ही उनके दो बेटों को भी राजनीति में स्थापित किया गया. एक बेटा बीजेपी से सांसद बना जो संतकबीर नगर से सांसद है और उन्हें फिर से पार्टी ने टिकट भी दिया है. दूसरे बेटे को विधायक बनाने में भी पार्टी ने मदद की.
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि निर्वाचन क्षेत्र के 21 लाख मतदाताओं में यहां लगभग नौ लाख ओबीसी और छह लाख उच्च जाति के मतदाता हैं. जिनमें से लगभग 3.5 लाख निषाद और 2.4 लाख यादव हैं. इनमें 2.5 लाख दलित और दो लाख मुस्लिम हैं. यही कारण है कि सपा की काजल निषाद अपनी बढ़त का दावा कर रही हैं.
गोरखपुर में निषादों के नेता संजय निषाद की NISHAD पार्टी वर्तमान में भाई-भतीजावाद के आरोपों से दो चार हो रही है. चूंकि संजय निषाद प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री हैं तो जाहिर है कि उनके खिलाफ असंतोष तो रहेगा ही. स्थानीय निषाद वोटर्स को खटकता है कि उनके नेता संजय निषाद सत्ता की सारी मलाई खुद खा रहे हैं. दरअलस संजय निषाद खुद एमएलसी और राज्य मंत्री हैं, उनके बेटे श्रवण विधायक हैं. उनके एक और बेटे प्रवीण मौजूदा सांसद हैं, जो भाजपा के टिकट पर पड़ोसी संत कबीर नगर सीट से फिर से चुनाव लड़ रहे हैं. यही कारण है कि उन पर लगने वाले भाई भतीजावाद के आरोपों को बल मिल रहा है.
इसी तरह रवि किशन का सिटिंग एमपी होना भी बीजेपी के लिए एक मुश्किल पैदा कर रहा है. रविकिशन को आम जनता मुंबई और दिल्ली के बीच में ही पाती है. पिछले पांच साल में उन्हें कई बार रुपहले पर्दे पर भी देखा गया है. हालांकि सांसद बनने के बाद रविकिशन ने गोरखपुर में अपने आवास बनवा लिया है. पर गोरखपुर की जनता के बीच जितना समय काजल निषाद देती हैं उतना शायद रविकिशन नहीं दे पाते हैं. काजल चूंकि खुद निषाद परिवार से आती हैं इसलिए उनको लेकर निषादों में हमदर्दी भी है. क्योंकि काजल लगातार विधानसभा चुनाव, सांसद का चुनाव और गोरखपुर के मेयर का चुनाव लडती रहीं हैं और हारती भी रहीं हैं. इसलिए निषाद लोगों के मन में एक बार उनको एक बार जिताने की ललक पैदा हो गई है.
गोरखपुर दशकों से योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहा है. दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले 51 वर्षीय आदित्यनाथ इस निर्वाचन क्षेत्र से पांच बार सांसद रहें हैं. 2014 में गोरखपुर से सांसद चुने जाने के बाद 2017 में उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुन लिया गया. इसके बाद उन्हें अपने सांसद पद से रिजाइन करना पड़ा. 2018 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ. गोरखपुर सीट का जिस तरह का इतिहास रहा है उससे यही लगता था कि यह उपचुनाव बीजेपी जीत लेगी. यह योगी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल भी था. योगी प्रदेश के मुखयमंत्री बन चुके थे. इसके बावजूद जातिगत समीकरणों के चलते यह सीट बीजेपी हार गई. 2018 के गोरखपुर उपचुनाव में निषाद मतदाताओं ने उलटफेर करने में अहम भूमिका निभाई थी, जब तत्कालीन सपा उम्मीदवार प्रवीण निषाद ने भाजपा के उपेंद्र शुक्ला को 21,801 वोटों से हराया था. प्रवीण निषाद निषाद पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश सरकार में राज्य मंत्री संजय निषाद के पुत्र हैं .पिता अब एनडीए का हिस्सा हैं तो पुत्र प्रवीण निषाद बीजेपी के टिकट पर 2019 में संत कबीर नगर से सांसद बन चुके हैं. पार्टी ने उन पर भरोसा जताते हुए एक बार फिर संत कबीर नगर से प्रत्याशी बनाया है.
तमाम नकारात्मक बातों के बीच रविकिशन के पास सबसे बड़ी उम्मीद यह है कि उनके साथ मोदी और योगी की छवि है . जिनके नाम पर पूरे देश में वोट पड़ता है. लाभार्थी स्कीम्स और इंन्फ्रास्ट्रक्चर के डिवेलपमेंट, राममंदिर का निर्माण, भारत का दुनिया में बढता वर्चस्व आदि के नाम पर जनता स्थानीय उम्मीदवार के बजाय मोदी के नाम पर वोट करती है. इसी तरह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम कानून व्यवस्था को संभाले रखना, दंगा मुक्त प्रदेश बनाने की उपलब्धि शामिल है. रविकिशन शुक्ला के समर्थक कहते हैं कि योगी जी के नाम पर हमें निषादों और मुसलमानों के भी वोट मिल रहे हैं.
नए होटल, सड़कें, चीनी मिलें, खाद कारखाने और कानून-व्यवस्था में सुधार ऐसी चीजें हैं जिनके चलते आम लोगों की सराहना मिल रही है. यहां शहर में स्थित रामगढ़ ताल में कभी लाशें तैरती थीं, पर अब यह स्थान पूर्वांचल के प्रमुख टूरिस्ट स्थल के रूप डिवेलप हो चुका है. क्रूज़ सेवा ने शहर को एक नया रूप दिया है. बैंक से रिटायर्ड रमेंश चंद्र श्रीवास्तव कहते हैं कि यहां लोग जाति के लिए नहीं बल्कि विकास के लिए वोट करेंगे. श्रीवास्तव कहते हैं कि यह शहर एक नए एम्स, उर्वरक संयंत्र, रामगढ़ ताल और एक प्राणी उद्यान के लिए जाना जाता है. गोरखपुर शहर कभी माफिया और मच्छरों के लिए बदनाम रहा है. इंसेफालाइटिस से हर साल सैकड़ों जान जाती रही है. माफिया गुटों के बीच लड़ाई में भी हर महीने दर्जनों लोगों के खून बहते रहे हैं. महाराज जी के सीएम बनने के बाद सब ओर शांति है.
पिछले दशक के दौरान, विशेष रूप से योगी सरकार के पिछले सात वर्षों में, अपराध दर में भारी गिरावट दर्ज की गई है और जिले में कई विकास परियोजनाओं के साथ परिवर्तन आया है. इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट बताती है कि गोरखपुर में बहुत तेजी से विकास हुआ है. पिछले दस सालों में लोगों की आय में पूरे देश में 34 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है पर गोरखपुर के लोगों की आय में 66 प्रतिशत की बढ़ोतरी यहां के विकास की कहानी कहती है.