सिवगिरी संवाद के 100 वर्ष : जब गांधी और नारायण गुरु ने दिखाई समानता व अहिंसा की राह”
1925 में सिवगिरी मठ में हुई मुलाक़ात ने दी सामाजिक जागरण को नई दिशा ‘एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर – मानवता के लिए’ का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक शिक्षा, आत्मनिर्भरता और अहिंसा पर आधारित गुरु के विचार बने सामाजिक क्रांति की धुरी
केरल के सिवगिरी मठ में 12 मार्च 1925 को हुई ऐतिहासिक मुलाक़ात ने भारत की सामाजिक धारा को बदलकर रख दिया। महात्मा गांधी और श्री नारायण गुरु का यह संवाद न केवल वैकोम सत्याग्रह को मजबूती देने वाला साबित हुआ, बल्कि समानता, अहिंसा और भाईचारे के रास्ते पर पूरे देश के लिए प्रेरणा बना।
साल 2025 भारत के लिए एक ऐतिहासिक स्मृति का वर्ष है। यह वह अवसर है जब हम उस महान संवाद की शताब्दी मना रहे हैं जिसने सामाजिक क्रांति और राष्ट्र निर्माण की दिशा को नई ऊर्जा दी थी। 12 मार्च 1925 को केरल के पावन सिवगिरी मठ में महात्मा गांधी और श्री नारायण गुरु आमने-सामने आए थे।
उस समय गांधीजी वैकोम सत्याग्रह के समर्थन में केरल पहुँचे थे। आंदोलन का उद्देश्य था मंदिर मार्गों और मंदिर प्रवेश पर लगे जातिगत प्रतिबंधों को समाप्त करना। इसी क्रम में सिवगिरी में गुरु और गांधी के बीच गहन चर्चा हुई। दोनों ने माना कि जाति आधारित भेदभाव को चुनौती देने का सबसे सशक्त हथियार अहिंसा है। उन्होंने ज़ोर दिया कि समानता और सम्मान अपने धर्म और आस्था के भीतर ही स्थापित होना चाहिए, न कि किसी जबरन धर्मांतरण से।
श्री नारायण गुरु ने स्पष्ट कहा कि समाज के उत्थान के लिए शिक्षा, आत्मनिर्भरता और आर्थिक विकास सबसे आवश्यक साधन हैं। उनका अमर संदेश—“एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर – मानवता के लिए”—आध्यात्मिक उद्घोष से कहीं बढ़कर सामाजिक परिवर्तन की पुकार था।
गुरु की शिक्षाओं का मूल संदेश :
समानता और भाईचारा : जाति, संप्रदाय और धर्म से परे सभी मनुष्यों को समान दृष्टि से देखना।
शिक्षा का प्रसार : अंतिम व्यक्ति तक शिक्षा पहुँचाना और ज्ञान को मुक्ति का माध्यम बनाना।
आर्थिक आत्मनिर्भरता : श्रम, उद्यम और आत्मनिर्भरता से समाज को सशक्त बनाना।
धार्मिक सहिष्णुता : हर धर्म की आंतरिक सच्चाई को स्वीकारना और परस्पर सम्मान बनाए रखना।
आज जब पूरी दुनिया असमानता, साम्प्रदायिक तनाव और पर्यावरणीय संकट जैसी चुनौतियों से जूझ रही है, गुरु का दर्शन और भी प्रासंगिक हो उठा है। डिजिटल युग में भी उनका संदेश हमें याद दिलाता है कि तकनीकी विकास तभी सार्थक है जब उसमें मानवीय करुणा, समान अवसर और नैतिक जिम्मेदारी समाहित हो।
भारत इस शताब्दी वर्ष पर महात्मा गांधी और श्री नारायण गुरु दोनों को नमन करता है। महात्मा गांधी ने स्वयं गुरु को “अपने समय का महानतम हिन्दू सुधारक” कहा था। आज भी गुरु का संदेश—“एक जाति, एक धर्म, एक ईश्वर – मानवता के लिए”—हमें समानता, अहिंसा और शाश्वत शांति की राह दिखाता है।
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