जिंदा पिता को बेटों ने पहुंचा दिया श्मशान....गैंगरीन होने पर घर से निकाला, अंतिम संस्कार किया

जिंदा पिता को बेटों ने पहुंचा दिया श्मशान....गैंगरीन होने पर घर से निकाला, अंतिम संस्कार किया

जिंदा पिता को बेटों ने पहुंचा दिया श्मशान....गैंगरीन होने पर घर से निकाला, अंतिम संस्कार किया

गरियाबंद। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के ग्राम मदांगमूडा में बेटों ने अपने जिंदा पिता को श्मशान पहुंचा दिया है। बेटों ने उसे घर से निकालकर उसके लिए श्मशान के मुहाने पर झोंपड़ी बना दी। गैंगरीन से पीड़ित इस बुजुर्ग गुंचू यादव (65 वर्ष) को परिवार वालों ने इलाज कराने के बदले उसे जीवित ही मरने के लिए मजबूर कर दिया है।

गुंचू के बेटे घेनुराम ने कहा कि उसके पिता को 5 साल से बड़ी बीमारी हो गई है। पैर सड़ रहे हैं, उनका रायपुर ले जाकर भी इलाज करवाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। दो बार ऑपरेशन भी हुआ, तब भी पिता ठीक नहीं हुए। इलाज में सारी जमापूंजी भी खत्म हो गई।

इधर गांववालों को आशंका थी कि रोग पूरे गांव में फैल जाएगा, इसलिए दोनों बेटों ने जिंदा पिता के अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया 12 दिन पहले कर दी। बेटों ने कहा कि उन्हें डर था कि अगर पिता की मौत हुई, तो लोग कंधा देने भी नहीं आएंगे। इसलिए अब श्मशान घाट के मुहाने पर ही कच्ची झोंपड़ी बना दी है। मां दोनों वक्त का खाना बर्तन में डाल आती है।

मदांगमूडा में यादव समाज के श्मशान घाट से महज 50 मीटर की दूरी पर झोंपड़ी में रहकर अब गूंचु यादव मौत का इंतजार कर रहा है। उसका कहना है कि अंतिम संस्कार तो पहले ही हो गया है। ग्रामीणों को बुजुर्ग के कुष्ठ रोगी होने की भी आशंका थी, लेकिन कुष्ठ रोग उन्मूलन के नोडल अधिकारी मनमोहन ठाकुर ने साफ कर दिया है कि बुजुर्ग को कुष्ठ रोग नहीं है, बल्कि गैंगरीन है।

बेटा बोला-मैं इलाज करवाकर थक चुका था

बेटे ने कहा कि पिता घर पर ही रह रहे थे, लेकिन गांव के कुछ लोगों को इस पर आपत्ति थी। वे कहते थे कि हमें भी ये रोग लग जाएगा, इसलिए मजबूरन पिता को घर से दूर करना पड़ा। 12 दिन पहले बैठक हुई, जिसमें सरपंच खगेश्वर नागेश समेत बाकी ग्रामीण मौजूद रहे। पिता के इलाज में सभी ने सहयोग देने की बात कही, लेकिन मैं इलाज करवाकर थक चुका था, इसलिए दूसरा विकल्प गांव से बाहर रखना ही बचा था, इसलिए गांव से बाहर उनके रहने की व्यवस्था की है।

बेटे घेनुराम ने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि जब आज रोगी पिता के लिए कोई नहीं आ रहा, तो कल उनकी मौत के बाद भला कौन आएगा। वहीं सरपंच खगेश्वर नागेश ने कहा कि सारा फैसला उनके बेटों पर हमने छोड़ दिया था, वे अपने खुद के निर्णय से पिता को बाहर रख रहे हैं।

जानकारी मिलने पर समाजसेवी गौरी कश्यप भी बुजुर्ग के पास पहुंचे और उनका हाल जानकर उन्हें खाने का सामान भी सौंपा। समाजसेवी उनकी पत्नी और परिवार से भी मिले। गौरी कश्यप ने राजधानी के एनजीओ से सम्पर्क कर जल्द ही इलाज की व्यवस्था कराने की बात कही है।