"टाइगर अब नहीं दहाड़ेगा": पद्मश्री हास्य कवि सुरेंद्र दुबे का निधन, साहित्य-जगत में शोक की लहर
ठहाकों के कोकड़े और छत्तीसगढ़ी संस्कृति के राजदूत सुरेंद्र दुबे का हार्ट अटैक से निधन; 2018 में खुद अपनी 'मौत' पर लिखी थी कविता - 'टाइगर अभी जिंदा है'

हास्य कवि सम्मेलन के मंचों को ठहाकों से गूंजाने वाले, और छत्तीसगढ़ी संस्कृति को वैश्विक पहचान दिलाने वाले पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे अब हमारे बीच नहीं रहे। गुरुवार को हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया। रायपुर के एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में उनका इलाज चल रहा था। साहित्य जगत ने एक हँसते-हँसाते व्यक्तित्व को खो दिया है।
दुर्ग। छत्तीसगढ़ की माटी से निकले और अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचने वाले हास्य कवि सुरेंद्र दुबे का गुरुवार को निधन हो गया। वे लंबे समय से हृदय संबंधी समस्या से जूझ रहे थे। रायपुर के एडवांस कार्डियक सेंटर में इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनके निधन की खबर भाजपा नेता उज्ज्वल दीपक ने सोशल मीडिया पर साझा की। साथ ही, देशभर के साहित्यकारों, कलाकारों और प्रशंसकों ने इस खबर से गहरा शोक जताया। कवि कुमार विश्वास ने श्रद्धांजलि देते हुए लिखा:
"छत्तीसगढ़ी भाषा-संस्कृति के वैश्विक राजदूत, बेहद ज़िंदादिल कवि, पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे का जाना अपूरणीय क्षति है। रायपुर का एक हिस्सा आज सुना हो गया।"
मौत की अफवाह पर भी कविता लिखने वाले कवि
गौरतलब है कि 2018 में सुरेंद्र दुबे की मृत्यु की अफवाह इंटरनेट पर फैल गई थी, जो वास्तव में राजस्थान के एक अन्य कवि से जुड़ी खबर थी। इस अफवाह पर भी दुबे ने अपनी चिर-परिचित शैली में कविता लिखी और मंचों पर हंसते हुए सुनाई।
उनकी कविता की मशहूर पंक्तियां थीं:
"टेंशन में मत रहना बाबू, टाइगर अभी जिंदा है।"
"मेरी पत्नी को किसी ने फोन कर कहा – दुबे जी निपट गए,
मेरी पत्नी बोली – हमारे भाग्य कहाँ ऐसे हैं,
रात को पनीर खा के सोए हैं।"
उनकी यह हास्यपूर्ण प्रतिक्रिया दर्शकों को न सिर्फ गुदगुदाती थी, बल्कि उनकी ज़िंदादिली और शब्दों पर पकड़ को भी दर्शाती थी।
डॉ. सुरेंद्र दुबे केवल एक कवि नहीं थे, बल्कि छत्तीसगढ़ी अस्मिता के संवाहक थे। मंच पर उनका हर शब्द, हर व्यंग्य, हर कविता – श्रोताओं के दिल में घर कर जाती थी। उनका जाना हँसी की उस आवाज़ का मौन हो जाना है, जो वर्षों तक लाखों चेहरों पर मुस्कान लाती रही।