शादी एक जादुई शब्द है और इसका असर पूरी दुनिया में है': समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में बहस

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर मंगलवार को चौथे दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिककर्ताओ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गीता लूथरा ने कहा कि शादी एक जादुई शब्द है और इस जादू का असर पूरी दुनिया में है. गीता लूथरा ने कहा कि इसका हमारे सम्मान और जीवन जीने से जुड़े मामलों से सीधा संबंध है.

शादी एक जादुई शब्द है और इसका असर पूरी दुनिया में है': समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट में बहस

नई दिल्ली. समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर मंगलवार को चौथे दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिककर्ताओ की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गीता लूथरा ने कहा कि शादी एक जादुई शब्द है और इस जादू का असर पूरी दुनिया में है. गीता लूथरा ने कहा कि इसका हमारे सम्मान और जीवन जीने से जुड़े मामलों से सीधा संबंध है.

लूथरा ने कहा कि समलैंगिक विवाह करने वालों को शादी करने से वंचित करना ठीक वैसा ही है जैसे महिलाओं से उनके मतदान का अधिकार छीन लिया जाए. उन्होंने कहा, ‘यह ऐसा ही है जैसे पहले कभी लिंग के आधार पर महिलाओं से उनके वोट देने के अधिकारों को छीन लिया जाता था.’

सुनवाई के दौरान जस्टिस रविंदर भट ने कहा कि उन्होंने देखा है कि संविधान की मूल संरचना की महत्वपूर्ण अवधारणा देने वाले ऐतिहासिक केशवानंद भारती मामले में पूरे फैसले समेत दस्तावेजों के चार से पांच खंड मामले में दाखिल किए गए हैं. इसपर सीजेआई ने पूछा, ‘हमने उच्चतम न्यायालय के वेब पेज पर केशवानंद भारती मामले के सभी खंड तथा उसे जुड़ा सबकुछ जारी किया है. इसे यहां किसने शामिल किया?’

समलैंगिक विवाह : सुप्रीम कोर्ट में चौथे दिन हाइब्रिड तरीके से सुनवाई
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई के चौथे दिन उच्चतम न्यायालय की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ के दो सदस्यों ने सुनवाई में ऑनलाइन माध्यम से भाग लिया. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा अदालत कक्ष में उपस्थित रहे, जबकि न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति एस आर भट ने ऑनलाइन माध्यम से सुनवाई में भाग लिया.

उच्चतम न्यायालय ने इस मामले पर 20 अप्रैल को सुनवाई में कहा था कि सहमति से बने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के बाद वह अगले कदम के रूप में ‘शादी की विकसित होती धारणा’ को फिर से परिभाषित कर सकता है. पीठ इस दलील से सहमत नहीं थी कि विषम लैंगिकों के विपरीत समलैंगिक जोड़े अपने बच्चों की उचित देखभाल नहीं कर सकते.

बहरहाल, केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा था कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का अनुरोध करने वाली याचिकाएं ‘शहरी संभ्रांतवादी’ विचारों को प्रतिबिंबित करती हैं और विवाह को मान्यता देना अनिवार्य रूप से एक विधायी कार्य है, जिस पर अदालतों को फैसला करने से बचना चाहिए.