आज छठ महापर्व का दूसरा दिन, खरना पूजा के साथ शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत

आज छठ महापर्व का दूसरा दिन, खरना पूजा के साथ शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत

नहाय-खाय के अगले दिन खरना पूजन का दिन होता है. यह छठ पूजा का दूसरा दिन है, जिसे ‘खरना’ या ‘लोहंडा’ भी कहते हैं. यह दिन व्रती यानी छठ का व्रत रखने वाले के लिए बेहद सबसे अधिक पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से असली तपस्या और भक्ति की शुरुआत होती है. आइए जानते हैं कि खरना पूजा क्या है, इसका धार्मिक महत्व क्या है और इस दिन बनाए जाने वाले प्रसाद की विशेषता क्या है?

पटना (ए)। लोक आस्था के महापर्व छठ का शुभारंभ हो चुका है. हर ओर श्रद्धा और आस्था के रंग नजर आ रहे हैं. छठ के इस महापर्व का रविवार को यानी आज दूसरा दिन है. छठ के दूसरे दिन खरना पूजा का विधान है और उसके बाद अगले दो दिन अलग-अलग समय पर सूर्य देवता को अर्घ्य देने की परंपरा निभाई जाएगी. आइए आपको खरना का महत्व और पूजन विधि बताते हैं।

खरना का महत्व

छठ पर्व में खरना का दिन अत्यंत विशेष माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से 36 घंटे के निर्जला व्रत की शुरुआत होती है. यह दिन शारीरिक और मानसिक पवित्रता प्राप्त करने का प्रतीक माना गया है. खरना के दौरान व्रती अपने मन, विचार और कर्म को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं ताकि आने वाले कठोर व्रत के लिए पूर्ण तैयार हो सकें. इस दिन बनाए गए प्रसाद को परिवार और अन्य लोगों के साथ साझा किया जाता है।

खरना का प्रसाद

खरना में गुड़ की खीर बनाने की परंपरा है. यह प्रसाद चावल, दूध और गुड़ से बनाया जाता है. इसके साथ, गेहूं के आटे की रोटी या पूरी भी बनाई जाती है. पहले यह प्रसाद सूर्यदेव और छठी मैया को अर्पित किया जाता है. उसके बाद व्रती इसे ग्रहण करते हैं. इसी प्रसाद का सेवन करने के बाद ही 36 घंटे का कठोर निर्जला उपवास शुरू हो जाता है।

खरना की पूजा विधि

खरना में प्रातःकाल में सूर्योदय से पहले स्नान कर आत्मिक शुद्धि का संकल्प लें और सूर्य देव व छठी मैया का ध्यान करते हुए दिनभर निर्जला व्रत रखें. इसके बाद शाम की पूजा से पहले पूजन स्थल की सफाई करें. सूर्यास्त के बाद प्रसाद तैयार करें।

इस दिन आमतौर पर गुड़ की खीर या दूध-चावल से निर्मित खीर बनाई जाती है. इसके साथ आटे की रोटी या पूरी भी बनाई जाती है. इस प्रसाद में केला भी शामिल किया जाता है. प्रसाद तैयार होने के बाद सूर्य देव और छठी माता की विधिवत पूजा करें. फिर मंत्र जप करते हुए पहले सूर्य देव और फिर छठी मैया को भोग लगाएं।

खरना का दिन साधक और सूर्य देव के बीच एक सेतु की तरह माना जाता है. इस दिन व्रती सूर्य देव से आशीर्वाद की कामना करते हैं कि वे आगामी दो दिनों का व्रत शुद्धता और निष्ठा से पूरा कर सकें. मान्यता है कि खरना पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य का संचार होता है. यह दिन केवल पूजा का नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि और मन की शांति का पर्व है।