कैदी बने कारीगर: दुर्ग जेल बना आत्मनिर्भरता का केंद्र
दुर्ग केंद्रीय जेल में बंदियों को मिल रहा रोजगारपरक प्रशिक्षण, एलईडी बल्ब निर्माण से मिल रही नई पहचान
दुर्ग केंद्रीय जेल अब केवल सजा काटने का स्थान नहीं, बल्कि बंदियों को आत्मनिर्भर बनाने का सशक्त केंद्र बन चुका है। जेल प्रशासन की अनूठी पहल के तहत यहां बंदियों को एलईडी बल्ब निर्माण का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे वे अपने जीवन को नई दिशा दे रहे हैं।
दुर्ग। राज्य की जेलों की तस्वीर बदल रही है, और इसकी मिसाल बन रही है दुर्ग केंद्रीय जेल। यहां की जेल व्यवस्था अब सुधार और पुनर्वास की नई मिसाल गढ़ रही है। जेल अधीक्षक मनीष संभाकर की सोच और प्रतिबद्धता ने यहां कैदियों को न केवल समय बिताने का जरिया दिया, बल्कि जीवन संवारने का अवसर भी।
जेल परिसर में शुरू हुई एलईडी बल्ब निर्माण की कार्यशाला बंदियों के लिए उम्मीद की किरण बन गई है। हर बैच में 10 कैदी प्रशिक्षण ले रहे हैं और अब तक सैकड़ों बल्ब बनाए जा चुके हैं, जिन्हें बाजार में भी खपाया जा रहा है। इससे न केवल आर्थिक लाभ हो रहा है, बल्कि बंदियों में आत्मविश्वास और स्वाभिमान की भावना भी जन्म ले रही है।
अधिकारियों का मानना है कि यह कौशल प्रशिक्षण बंदियों को सजा पूरी होने के बाद समाज में नई शुरुआत करने का अवसर देगा। वहीं कुछ बंदियों ने भी इस योजना पर प्रसन्नता जताई और कहा कि इस प्रशिक्षण ने उन्हें एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने की प्रेरणा दी है।
इस तरह की पहल न केवल जेल सुधारों को दिशा दे रही है, बल्कि समाज को भी यह संदेश दे रही है कि अगर अवसर और मार्गदर्शन मिले तो कोई भी व्यक्ति अपने अतीत से ऊपर उठकर एक नई शुरुआत कर सकता है। दुर्ग जेल की दीवारों से अब सिर्फ कैदियों की आहें नहीं, बल्कि उम्मीद और आत्मनिर्भरता की रोशनी बाहर आ रही है।