धान में डूबा ख़ज़ाना: किसानों से महंगी खरीदी, सस्ते में बेचने की नौबत
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार पर साधा निशाना, बोले- 'दिल्ली में छत्तीसगढ़ की नहीं चलती', धान की नीलामी में हजार रुपए प्रति क्विंटल तक का घाटा संभव

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसानों से समर्थन मूल्य पर खरीदे गए धान की नीलामी में अब बड़ा संकट खड़ा हो गया है। सरकार ने यह धान 3100 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदा था, लेकिन नीलामी में इसकी बोली घटकर 2000 रुपए तक पहुंच गई है। इससे राज्य सरकार को प्रति क्विंटल करीब 1000 रुपए का घाटा उठाना पड़ सकता है।
रायपुर। छत्तीसगढ़ में इस वर्ष धान की नीलामी राज्य सरकार के लिए घाटे का सौदा बनती नजर आ रही है। किसानों से 3100 रुपए प्रति क्विंटल की दर से खरीदे गए धान की अब मंडियों में बोली 2000 रुपए तक आ रही है। यदि यही रुझान जारी रहा, तो सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान हो सकता है।
इस गंभीर स्थिति पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में ट्रिपल इंजन सरकार तो है, लेकिन उसकी आवाज़ दिल्ली में नहीं सुनी जाती। बघेल का कहना है कि यदि केंद्र सरकार राज्य से पूरा चावल उठा लेती, तो नीलामी की जरूरत ही न पड़ती और सरकार को घाटा नहीं होता। भूपेश बघेल ने चेतावनी भी दी कि अगर इस तरह नुकसान होता रहा, तो भविष्य में समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की पूरी प्रणाली खतरे में पड़ सकती है।
इधर, बीजेपी किसान मोर्चा के प्रभारी और पार्टी प्रवक्ता संदीप शर्मा ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस शासन में घोटालों की भरमार थी — तब किसानों के धान को हाथियों तक को खिला दिया गया था। अब वही कांग्रेस बीजेपी सरकार पर उंगली उठा रही है, जो हास्यास्पद है। राज्य के डिप्टी सीएम अरुण साव ने सफाई देते हुए कहा कि सरकार ने किसानों को आर्थिक मजबूती देने के लिए प्रति एकड़ 21 क्विंटल धान 3100 रुपए की दर से खरीदा है। अब जो स्टॉक अतिरिक्त बचा है, उसकी नीलामी की जा रही है।
नीलामी में कम कीमत का कारण बताते हुए राइस मिलर्स का कहना है कि ऑनलाइन प्रक्रिया में धान की गुणवत्ता की सही जानकारी नहीं होती, जिससे रिस्क बढ़ता है। गर्मी के मौसम में धान की नमी भी कम हो जाती है, जिससे चावल टूटने की आशंका बढ़ जाती है। यही वजह है कि कम दाम की बोली लगाई जा रही है। सरकार ने नीलामी के लिए बेस रेट 1900 से 2100 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है। हालांकि जिलों को अब तक इसकी आधिकारिक जानकारी नहीं मिली है। यदि बोली इससे भी नीचे जाती है, तो टेंडर दोबारा निकाला जाएगा या फिर मार्कफेड मुख्यालय से निर्देश लिए जाएंगे।