लोकसभा में उठा मामला:गैर रणनीतिक सेक्टर में होने से बीएसपी पर भी निजीकरण किए जाने का खतरा

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड (आरआईएनएल) का भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) में विलय नहीं किया जाएगा। वहीं देश का इस्पात उद्योग गैर रणनीतिक (नान स्ट्रैटेटिजक) सेक्टर में होने की वजह से बीएसपी पर भी निजीकरण की तलवार लटकी हुई है। यह जानकारी 31 जुलाई को लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए इस्पात राज्यमंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने दी।
दरअसल भाजपा के सांसद जीवीएल नरसिंहा ने सवाल किया था कि क्या सरकार आरआईएनएल के सेल में विलय करने पर विचार करने की इच्छुक है जो 1.1 लाख करोड़ का निवेश करके अपनी क्षमता को बढ़ाकर 35 मिलियन टन (एमटी) करने की योजना बना रही है। इस पर इस्पात राज्यमंत्री ने साफ कहा कि आरआईएनएल का सेल में विलय करने पर किसी तरह का विचार नहीं किया जा रहा है। आत्मनिर्भर भारत के लिए केंद्र सरकार ने अधिसूचित नई सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (पीएसई) नीति के
अनुसार मौजूदा सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को मुख्यत:
रणनीतिक और गैर रणनीतिक क्षेत्रों में वर्गीकृत किया गया है। गैर रणनीतिक क्षेत्रों वाले पीएसई पर व्यवहार्यता के आधार पर निजीकरण के लिए विचार किया जाएगा अन्यथा ऐसे उद्यमों को बंद किए जाने पर विचार किया जाएगा। नई पीएसई नीति के अनुसार सरकार ने रणनीतिक विनिवेश के माध्यम से आरआईएनएल की सहायक कंपनियों/संयुक्त उद्यमों में आरआईएनएल की हिस्सेदारी सहित आरआईएनएल में केंद्र सरकार की शेयरधारिता 100 प्रतिशत विनिवेश के लिए सैद्धांतिक अनुमोदन दिया है। बता दें कि इस्पात उद्योग गैर रणनीतिक सेक्टर में हैं। इस वजह से बीएसपी सहित सेल पर भी निजीकरण की तलवार लटकी हुई है।
विलय को लेकर इसलिए उठे थे सवाल, जिसका जवाब दिया
सेल अपने एकीकृत इकाइयों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है। इसमें दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो और इस्को प्लांट शामिल है। इन इकाइयों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 1.1 लाख करोड़ की जरूरत होगी। जानकारों का कहना है कि जब सेल अपनी पुरानी इकाइयों की उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए 1.1 लाख करोड़ खर्च करने की योजना बना रहा है, उससे बेहतर आरआईएनएल का सेल में विलय कर दिया जाए।
विस्तारीकरण के बाद भी रेटेड कैपेसिटी से उत्पादन नहीं
सेल ने आधुनिकीकरण और विस्तारीकरण परियोजना के पहले चरण में बीएसपी सहित पांच एकीकृत इकाइयों को शामिल किया था। परियोजना समय पर पूरा नहीं हो पाने की वजह से लागत बढ़ गई और प्रबंधन को 8720 करोड़ अतिरिक्त खर्च करना पड़ा। कागजों में परियोजना को तो तीन साल पहले ही पूरा कर लिया गया है लेकिन आज तक किसी भी इकाई अपनी क्षमता के अनुसार उत्पादन नहीं किया है। इस वजह से कंपनी को एक्सपांशन प्रोजेक्ट भारी पड़ रहा है।
विलय से होता समस्या का निराकरण, मैनपावर भी बढ़ जाता
आरआईएनएल मैन पावर की कमी से जूझ रही है। जिसके कारण नगरनार में ही करीब 22 हजार करोड़ खर्च किए जाने के बाद भी उत्पादन पटरी पर नहीं आ रहा है। वहीं सेल में निर्धारित से अधिक मैनपावर है। पहले चरण के विस्तारीकरण में आधुनिक मशीनें स्थापित किए जाने के बाद मैनपावर की उपयोगित और भी कम हो गई है। इस स्थिति में दोनों कंपनियों का विलय कर दिया जाता तो आरआईएनएल में मैनपावर की कमी दूर हो जाती और सेल के सरप्लस मैनपावर को काम मिल जाता।