एक साल में 3000 मोबाइल चोरी........मोबाइल चालू करने पर पकड़े जाने का खतरा

एक साल में 3000 मोबाइल चोरी........मोबाइल चालू करने पर पकड़े जाने का खतरा

रायपुर।(ए)। भिलाई-दुर्राग-रायपुर में पिछले एक साल में 3000 से ज्यादा मोबाइल या तो लूटे गए या चोरी हुए। इनमें से पुलिस ने 2000 फोन को सर्चिंग के में रखा। पूरे साल तलाश करने के बाद पुलिस 610 मोबाइल ही ढूंढ सकी, क्योंकि बाकी फोन को ऑन ही नहीं किया गया।

चोरों-लुटेरों ने फोन चालू नहीं किया तो ये पता ही नहीं चल सका कि मोबाइल को किस नंबर पर चलाया जा रहा है। पुलिस का साइबर अमला भी हैरान है कि फोन चालू क्यों नहीं किए जा रहे हैं। इनपुट मिला है कि चोरी के मोबाइल के पार्टस बेचे जा रहे हैं।

इसमें पकड़े जाने का बिलकुल खतरा नहीं है। इस तरह संगठित तरीके से चोरी के महंगे और कीमती सेट के पार्टस उसी मॉडल के पुराने मोबाइल में लगाए जा रहे हैं।

ये भी पता चला है कि चोरी का मोबाइल खरीदने वाले दुकानदार इसमें चोरों और मरम्मत करने वालों के बीच की कड़ी के रूप में काम रहे हैं।

चोरी के बाद मोबाइल फोन उसकी कीमत और मॉडल के हिसाब से उसी स्तर के दुकानदार तक पहुंचाया जाता है। ऐसे दुकानदार जिनकी मोबाइल दुकान में मरम्मत की जाती है, वे फोन खरीद लेते हैं या ऐसी दुकानों में पहुंचाते हैं जिनका मोबाइल सुधारने का बड़ा काम है। दुकानदार मोबाइल खरीदकर उसके पार्टस मरम्मत के लिए आने वाले मोबाइल फोन में जरूरत के हिसाब से लगवा रहे हैं।

गुम मोबाइल को ऐसे सर्चिंग करती है पुलिस

मोबाइल ढूंढने या सर्च करने के लिए किसी सॉफ्टवेयर या सिस्टम का उपयोग नहीं करता है। बल्कि संबंधित टेलीकॉम कंपनी को मोबाइल का नंबर, मॉडल व आईएमईआई नंबर भेजा जाता है। कंपनी अपने-अपने सिस्टम में आईएमईआई नंबर अपलोड करती है। चोरी के मोबाइल पर नए सिम के माध्यम से जैसे ही चालू किया जाता है कंपनी को लोकेशन मिल जाता है।

ये भी पता चल जाता है कि किस नंबर से चलाया जा रहा है। उसके बाद पुलिस संबंधित को कॉल कर उस तक पहुंचती है। एंटी क्राइम एंड साइबर सेल प्रभारी गिरिश तिवारी ने बताया कि मोबाइल का आईएमईआई नंब (अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल उपकरण पहचान संख्या) होता है। इसी से मोबाइल को ट्रैक और ट्रैस किया जाता है।

हर मोबाइल का पार्टस उपयोगी

रविभवन में मोबाइल रिपेयर करने वाले संदीप कंधेर ने बताया कि हर मोबाइल का पार्टस उपयोगी होता है। मोबाइल का डिस्प्ले सबसे महंगा होता है। एक मोबाइल का डिस्प्ले उसी मॉडल के दूसरे मोबाइल में लगाया जाता है। इससे पुराना मोबाइल भी बिलकुल नया जैसे हो जाता है।

इसके अलावा बैटरी, कैमरा, रिंगर और आईसी का उपयोग किया जाता है। ऊपर की बॉडी भी काम आती है। दूसरे राज्यों और विदेशों में भी चोरी के मोबाइल के पार्टस की सप्लाई की जा रही है। 12 फीसदी मोबाइल ग्रामीण इलाकों में आधे दाम में बिक जाती है। 8 फीसदी मोबाइल अब सीमा पार दूसरे देशों में बेचा जा रहा है।

थानों में चोरी की रिपोर्ट डंप

साइबर सेल के माध्यम से ही फोन तलाश किया जाता है, लेकिन जब थानों से रिपोर्ट भेजी जाती है। आमतौर पर 10 शिकायतें आने पर थाने वाले 2-3 में ही एफआईआर करते हैं। वह भी प्रभावशाली लोगों के मोबाइल गुम होने पर। सामान्यत: मोबाइल चोरी या गुम होने की शिकायत लेकर पहुंचने वालों को थाने में कहा जाता है कि वे एक आवेदन लिखकर दें। आवेदन लेने के बाद थाने से एक पावती दी जाती है।

आवेदन लौटाया, फार्म दिया कहा- फोटो कॉपी कराओ

शहर का एक प्रमुख थाना। दोपहर का समय है 2 युवक थानें में मोबाइल गुम का रिपोर्ट लिखाने आए। वे बताने लगे कि उनका फोन कैसे चोरी हुआ पूरी बात सुने बिना थाने के मुंशी ने अपनी टेबल की दराज से एक फार्म निकाला और कहा- जाओ की दुकाने से फोटो कॉपी कराकर ले आओ। युवक फोटो कॉपी कराकर ले आए। तो उन्हें एक फार्म दिया, ये गुम मोबाइल की शिकायत का था।

युवक की लिखित शिकायत को लौटा दी कहा- इसकी जरूरत नहीं। फिर फार्म पर सील-मोहर लगाकर एक कॉपी दराज में डाल दिया और दूसरा पीड़ित को दे दिया। उसे तुरंत जांच के लिए साइबर सेल नहीं भेजा गया। ये हाल केवल एक थाने का ही नहीं शहर के लगभग सभी थानों में मोबाइल पीड़ितों के साथ यही बर्ताव हो रहा है। रिपोर्ट दर्ज करने की जगह सामान्य आवेदन लेकर पीड़ितों को लौटाया जा रहा है।