नक्सलियों की जायज मांग पूरी करेगी सरकार:मुख्यमंत्री ने दंतेवाड़ा में किया एलान

महिला दिवस के दिन मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय दंतेवाड़ा पहुंचे। खास बात यह रही की मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ पुलिस की उस स्पेशल यूनिट की महिलाओं से मुलाकात की जो नक्सलियों से लड़ती हैं। इस यूनिट में ऐसी महिलाएं भी शामिल है जो पहले नक्सली रह चुकी हैं मगर अब पुलिस ट्रेनिंग हासिल करके यह महिलाएं छत्तीसगढ़ पुलिस की कमांडो बनी है।
मुश्किल हालातों में ये महिला कमांडो जंगलों में दिन-रात नक्सलियों के खिलाफ चलने वाले ऑपरेशन में उनसे सीधी लड़ाई लड़ती हैं। मुख्यमंत्री जब दंतेवाड़ा पहुंचे तो हेलीपैड पर महिला गॉड्स ने ही उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर दिया। इसके बाद एंटी माइन व्हीकल के पास खड़़ी महिला कमांडो के ग्रुप के साथ मुख्यमंत्री ने तस्वीर खिंचवाई।
माता दंतेश्वरी के दर्शन के लिए भी मुख्यमंत्री गए। दंतेवाड़ा शहर के ऑडिटोरियम में आयोजित सम्मान समारोह में भी मुख्यमंत्री शामिल हुए। यहां क्षेत्र के विधायक, जनसंपर्क विभाग के अधिकारी मयंक श्रीवास्तव भी मंच पर थे। यहां मुख्यमंत्री ने एक अहम ऐलान भी किया जो नक्सलियों से जुड़ा हुआ था। विष्णु देव ने उन महिलाओं से भी मुलाकात की जो पहले नक्सली थी और अब पुलिस की कमांडो बन चुकी हैं।
नारायणपुर की महिला कमांडो सुमित्रा साहू ने CM से सीधे बात की। सुमित्रा बाेलीं- मैं 2004 से लेकर 2018 तक नक्सली थीं, नक्सलियों के जो अलग-अलग तरीके में काम होते हैं सभी का हिस्सा रही। मैंने नक्सली के रूप में 14 साल तक काम किया। नक्सलियों के साथ जंगल में महिलाओं की पोजीशन बहुत ही खराब होती है। खाने-पीने, कपड़े-लत्ते की दिक्कत होती है। जंगलों भूखे प्यासे भटकना पड़ता है। अपने परिवार को भी देखने नहीं मिलता था। मैं दुखी थी इसी वजह मैंने सरेंडर किया। पुलिस अधिकारियों ने चिट्ठी भेजकर मुझे सरेंडर की करने को भी कहा था।
मुख्यमंत्री ने सुमित्रा की बातें सुनकर कहा- आपके साहस को हम सैल्यूट करते हैं। आपने 14 साल तक नक्सली के रूप में अपना अनुभव शेयर किया और हमको आपके अनुभव से मुख्यमंत्री के नाते जो हमारे यहां के स्थानीय लोग हैं जो नक्सली हैं, उनसे हम कहना चाहेंगे कि नक्सलवाद को छोड़ें और आम लोगों का जीवन जीएं। संवाद करें उनकी क्या प्रॉब्लम है सरकार से। उनकी जो जायज मांग होगी उसको छत्तीसगढ़ की सरकार पूरा करेगी।
मैं आदिवासी समाज से हूं गांव का रहने वाला हूं। आदिवासी समाज और गांव के दुख दर्द को समझता हूं इसलिए किसी भी तरह के बहकावे में नहीं रहकर हम लोगों से संवाद करें और वह क्या चाहते हैं उसपर बातचीत हो। सुमित्रा जी जैसे बता रहे हैं कि यह भी कोई जीना है क्या जंगल जंगल भटकना न खाना पीना, ना सोने का ठिकाना, हर समय भय किधर से पुलिस आ जाएगी। कब गोली चल जाएगी, यह भी कोई जीवन है क्या। तो मैं आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर कह रहा हूं ऐसे लोगों से कि वह लोग विकास की मुख्य धारा से जुड़े संवाद के लिए तैयार हों।