टैरिफ बढ़ोतरी याचिका पर उठे सवाल, किसान संगठन ने की खारिज करने की मांग
प्रगतिशील किसान संगठन ने सीएसपीएल पर न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन और उपभोक्ता हितों की अनदेखी का आरोप लगाया

छत्तीसगढ़ की बिजली टैरिफ बढ़ाने की याचिका पर विवाद गहराता जा रहा है। छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन के अधिवक्ता राजकुमार गुप्त ने बिजली कंपनी सीएसपीएल की याचिका को न्यायिक प्रक्रिया के उल्लंघन और पारदर्शिता की कमी का हवाला देकर खारिज करने की मांग की है। उनका कहना है कि यह प्रस्ताव आम उपभोक्ताओं और किसानों के हितों के खिलाफ है।
रायपुर। राज्य में बिजली टैरिफ में बढ़ोतरी को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। निजी बिजली वितरण कंपनी सीएसपीएल द्वारा विद्युत नियामक आयोग में दायर टैरिफ बढ़ाने की याचिका पर छत्तीसगढ़ प्रगतिशील किसान संगठन ने कड़ी आपत्ति जताई है। संगठन के प्रतिनिधि एडवोकेट राजकुमार गुप्त ने आयोग से आग्रह किया है कि प्रक्रिया के उल्लंघन के कारण इस याचिका को तुरंत खारिज किया जाए।
गुप्त ने बताया कि सीएसपीएल ने दिसंबर 2024 में जो याचिका दायर की थी, उसमें कई बार संशोधन किया गया। उन्होंने कहा कि कानूनन हर संशोधन के बाद नई याचिका प्रस्तुत की जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा न कर के कंपनी ने न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन किया है। इतना ही नहीं, पूर्व में की गई प्रार्थना को वापस लेने के बावजूद उसी याचिका को आगे बढ़ाया गया है, जो नियमानुसार गलत है।
राजकुमार गुप्त ने विद्युत नियामक आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि याचिका दायर होने के छह महीने बाद जनसुनवाई आयोजित की गई, और उसकी सूचना भी केवल दो दिन पहले दी गई। इससे यह संदेह उत्पन्न होता है कि आयोग की मंशा ही उपभोक्ताओं की भागीदारी को सीमित रखना है। उन्होंने पूछा कि बस्तर और सरगुजा जैसे दूरस्थ क्षेत्रों के उपभोक्ता इतने कम समय में रायपुर में जनसुनवाई में कैसे शामिल हो सकते हैं?
किसान नेता ने यह भी कहा कि मौजूदा टैरिफ में ही कंपनी को लाभ हो रहा है, ऐसे में टैरिफ बढ़ाना पूरी तरह अनुचित और जनविरोधी कदम होगा। इससे लाखों उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा, खासकर ग्रामीण और कृषक वर्ग पर।
उन्होंने आयोग का ध्यान बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता की ओर भी खींचा। उन्होंने बताया कि ट्रांसफॉर्मर और कंडक्टर की क्षमता की मांग के अनुरूप अदला-बदली नहीं की जाती, जिससे ग्रामों में लंबे समय तक बिजली संकट बना रहता है। सुधार सामग्री की अनुपलब्धता और तकनीकी लापरवाही के कारण ब्रेकडाउन के बाद मरम्मत में कई दिन लग जाते हैं।
उन्होंने निष्कर्षतः कहा, “कंपनी ग्रामीण क्षेत्र में भेदभावपूर्ण रवैया अपनाती है, जबकि वसूली शत-प्रतिशत करती है। ऐसी स्थिति में टैरिफ बढ़ाना सिर्फ अन्याय ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक गैरजवाबदेही का संकेत है।”