नल है, पानी नहीं: अंजोरा ढाबा गांव में जल जीवन मिशन की पोल खुली
गांव में एकमात्र ट्यूबवेल के भरोसे 2500 लोगों की प्यास; जल जीवन मिशन की पाइपलाइन पड़ी सूखी, महिलाओं और बुजुर्गों की दिनचर्या सिर्फ पानी जुटाना
दुर्ग जिले का अंजोरा ढाबा गांव इन दिनों भीषण जलसंकट से गुजर रहा है। फरवरी की शुरुआत से ही एक-एक कर गांव के ट्यूबवेल सूख गए, और अब पूरा गांव एकमात्र ट्यूबवेल के भरोसे जी रहा है। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों की दिनचर्या का सबसे जरूरी काम अब ‘पानी लाना’ बन गया है। सरकार की योजनाएं यहां कागजों तक ही सिमटी नजर आती हैं।
दुर्ग। शहर से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर बसे अंजोरा ढाबा गांव में जल संकट ने विकराल रूप ले लिया है। करीब 2500 की आबादी वाले इस गांव में फरवरी से अब तक सभी ट्यूबवेल सूख चुके हैं। लोगों के पास अब केवल एक चालू ट्यूबवेल का सहारा है – जो कब बंद हो जाए, कोई भरोसा नहीं।
गांव के निवासी रोज सुबह-सवेरे उठकर डब्बा-बाल्टी लेकर पानी के लिए लंबी कतार में लगते हैं। यहां सुबह का मतलब अब चाय या नाश्ता नहीं, बल्कि "पानी जुटाना" है। सबसे ज्यादा प्रभावित गांव की महिलाएं और बेटियां हैं जिन्हें कई किलोमीटर दूर साइकिल से पानी लाने जाना पड़ता है।
पूर्व सरपंच का कहना है कि अंजोरा ढाबा विधानसभा क्षेत्र के अंतिम छोर पर स्थित होने के कारण विकास योजनाओं से अक्सर वंचित रह जाता है। "हर साल यही हाल होता है, शिकायतें करते हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती", उन्होंने बताया।
गांव के बुजुर्ग रामकुमार देखमुख कहते हैं, “अब तो घर के हर सदस्य को एक ही जिम्मेदारी है – पानी लाना। चाहे स्कूल हो, खेत या घर का काम – सब पानी के बाद ही होता है।”
सरकार की ‘जल जीवन मिशन’ योजना के अंतर्गत गांव में नल कनेक्शन तो लगाए गए हैं, लेकिन पानी का नामोनिशान नहीं है। पाइपलाइन सूखी पड़ी है और योजना सिर्फ फोटो खिंचवाने तक सीमित रह गई है।
गांव से थोड़ी दूरी पर शिवनाथ नदी बहती है। ग्रामीणों को लगता है कि वहीं से पानी लाकर संकट का हल निकाला जा सकता है, लेकिन नदी की हालत भी दयनीय है – गंदगी और प्रदूषण ने उसे भी बेहाल कर रखा है।
फिलहाल, गांववाले उम्मीद की डोर थामे बैठे हैं कि शायद कभी कोई जिम्मेदार अधिकारी उनकी पुकार सुने और जल संकट से राहत दिलाए।
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