भिलाई इस्पात संयंत्र में तकनीकी नवजीवन: 12 साल बाद फिर चला ओपन गैन्ट्री क्रेन का पहिया
सिंटरिंग प्लांट-3 में निष्क्रिय क्रेन का सफल पुनरुद्धार, स्क्रैप से घिरे क्षेत्र को बनाया उपयोगी व सुरक्षित जोन

भिलाई इस्पात संयंत्र के सिंटरिंग प्लांट-3 में वर्षों से निष्क्रिय पड़ी 5 टन क्षमता की ओपन गैन्ट्री क्रेन को तकनीकी विशेषज्ञों की टीम ने एक समर्पित अभियान के तहत फिर से सक्रिय कर दिया है। संयंत्र की यह उपलब्धि न केवल संसाधन संरक्षण का उदाहरण है, बल्कि कार्यक्षमता और सुरक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
भिलाई। सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र के सिंटरिंग प्लांट-3 में स्थित 5 टन क्षमता वाली ओपन गैन्ट्री क्रेन, जो बीते 12 वर्षों से निष्क्रिय अवस्था में थी, अब फिर से चालू हो चुकी है। यह ऐतिहासिक तकनीकी पुनरुद्धार 25 जुलाई को कार्यपालक निदेशक (संकार्य) श्री राकेश कुमार की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ।
इस अवसर पर मुख्य महाप्रबंधक प्रभारी (एसपी) श्री ए. के. दत्ता, मुख्य महाप्रबंधक (एसपी-3) श्री एस. वर्गीस और अन्य विभागों के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे। वर्ष 2002 में स्थापित यह क्रेन शुरुआत में मरम्मत की गई महंगी मशीनरी एवं उपभोग्य सामग्रियों को संभालने के लिए इस्तेमाल होती थी, लेकिन बीते एक दशक से यह स्क्रैप और कीचड़ के बीच दबी पड़ी थी।
आईवी रमना के नेतृत्व में पुनरुद्धार
महाप्रबंधक (एसपी-3) श्री आई. वी. रमना की पहल पर अप्रैल 2025 में पुनरुद्धार कार्य का आगाज़ हुआ। केवल क्रेन को ही नहीं, बल्कि आसपास के पूरे इलाके को पुनः उपयोगी बनाने पर भी जोर दिया गया।
इस परियोजना में शामिल थे:
- क्रेन की होइस्ट, LT/CT यांत्रिक प्रणाली की मरम्मत
- नियंत्रण पैनल को पुनः डिजाइन करना
- नई विद्युत केबलों की स्थापना
- क्षेत्रीय समतलीकरण, स्क्रैप हटाना (40 ट्रक से अधिक)
- नए स्टैंड का निर्माण, पहुंच मार्ग की सफाई
- क्षेत्र की बाड़बंदी और सौंदर्यीकरण
टीमवर्क बना सफलता की चाबी
इस कार्य में शून्य दुर्घटना के साथ नवीनीकरण पूर्ण हुआ, जिसमें यांत्रिक, विद्युत और संचालन विभाग के अधिकारियों की विशेष भूमिका रही। प्रमुख योगदानकर्ताओं में एम.यू. राव, केवल साहू, दिनेश मानिकपुरी, दीपक गुप्ता, एस.सी. साहू, एस.के. सत्पथी, आर.एल. साहू और जितेश शाहनी शामिल रहे। यह परियोजना न केवल संयंत्र की कार्यक्षमता बढ़ाने की दिशा में मील का पत्थर है, बल्कि यह उदाहरण है कि निष्क्रिय संसाधनों को फिर से उपयोगी बनाकर उत्पादन और सुरक्षा दोनों में संतुलन कैसे स्थापित किया जा सकता है।