थनौद के मूर्तिकारों की कला पर संकट: भारतमाला पुल बना रोज़ी-रोटी की राह में बाधा

कम ऊंचाई वाले पुल ने रोकी थनौद की विशाल मूर्तियों की रवानगी, मूर्तिकारों की आजीविका पर मंडरा रहा खतरा

थनौद के मूर्तिकारों की कला पर संकट: भारतमाला पुल बना रोज़ी-रोटी की राह में बाधा

छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का थनौद गांव अपनी अनूठी मूर्तिकला के लिए देशभर में प्रसिद्ध है, लेकिन अब यह कला एक गहरे संकट से जूझ रही है। भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत गांव में बने एक कम ऊंचाई वाले पुल ने इन कारीगरों के लिए नई मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। विशाल मूर्तियों को बाहर भेजने का रास्ता बंद होने से कलाकारों की पीढ़ियों से चलती आ रही आजीविका पर तलवार लटक रही है।

दुर्ग। भारतमाला प्रोजेक्ट के तहत बने एक पुल ने थनौद गांव के दर्जनों मूर्तिकारों की जिंदगी में नई चुनौती खड़ी कर दी है। थनौद, जिसे कलाकारों का गांव भी कहा जाता है, यहां 50 से अधिक परिवार वर्षों से पारंपरिक मूर्तिकला में संलग्न हैं। यहां की विशालकाय और आकर्षक मूर्तियां ना सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि देश के कई राज्यों में भेजी जाती हैं।

यहां के मूर्तिकार आमतौर पर 20 से 22 फीट या उससे भी ऊंची मूर्तियां बनाते हैं, लेकिन भारतमाला योजना के अंतर्गत जो नया पुल बना है उसकी ऊंचाई महज 13 फीट है। इस पुल के नीचे से इतनी ऊंची मूर्तियों को ले जाना संभव नहीं है, जिससे इन कलाकारों की पूरी सप्लाई चेन बाधित हो गई है। गांव के वैकल्पिक रास्ते संकरे हैं, जिनमें बिजली की लटकती तारें और सड़क की हालत बड़ी अड़चन हैं। इससे मूर्तियों का बाहर जाना लगभग असंभव हो गया है।

मूर्तिकार राधेश्याम चक्रधारी कहते हैं, “हमने बचपन से मूर्तियां बनाना सीखा है। यही हमारा पेशा है, यही हमारी पहचान। लेकिन अब हमारी कला इस पुल की ऊंचाई में कैद हो गई है।” वहीं, मूर्तिकार शिवकुमार कहते हैं, “अगर इस समस्या का हल नहीं निकला, तो हमारा पुश्तैनी व्यवसाय खत्म हो जाएगा। कई बार नेताओं और प्रशासन से संपर्क किया, लेकिन कोई ठोस जवाब नहीं मिला।” थनौद के मूर्तिकारों की मांग है कि या तो पुल की ऊंचाई बढ़ाई जाए या वैकल्पिक रास्ता उपलब्ध कराया जाए ताकि कला और आजीविका दोनों बच सकें।