आप जिसे 'इश्क' समझकर खोए हैं, वैज्ञानिक उसे कहते हैं 'कैमिकल लोचा'! जानिए क्यों बेकाबू हो जाता है दिल
प्यार के इस मौसम में अगर आप इश्क और मोहब्बत की कहानियों में खोए हैं तो ये जान लीजिए कि ये सिर्फ जज़्बात नहीं, इसके पीछे भी कैमिकल लोचा (scientific reason behind love) है. यूं ही नहीं किसी को देखकर दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं.

आखिर क्यों किसी को देखते ही वो अपना सा लगने लगता है और चाहकर भी मन उसी की ओर खिंचने लगता है. मुलाकात, प्यार और इकरार के इस सफर पर शायर न जाने कितनी शायरियां लिख चुके हैं. लोगों ने इस जज़्बात के इज़हार के लिए बहुत कुछ कह डाला है लेकिन विज्ञान इस बदले हुए व्यवहार को शारीरिक हॉर्मोन्स (scientific reason behind love) से जोड़ देता है और कहते है कि ये कोई दिल (why love happens) या धड़कन का नहीं बल्कि दिमाग का मामला है.
प्यार के इस मौसम में अगर आप इश्क और मोहब्बत की कहानियों में खोए हैं तो ये जान लीजिए कि ये सिर्फ जज़्बात नहीं, इसके पीछे भी कैमिकल लोचा है. यूं ही नहीं किसी को देखकर दिल बेकाबू नहीं होने लग जाता. अगर आप समझते हैं कि प्यार कोई जादू है तो जर्नल ऑफ कंपेरेटिव न्यूरोलॉजी में पब्लिश एक रिपोर्ट कहती है कि ये कैमिकल रिएक्शन है, जो दिमाग को इस तरह सोचने पर मजबूर करता है.
बस इतनी है प्यार की कहानी …
साल 2017 में आर्काइव ऑफ सेक्सुअल बिहेवियर में पब्लिश रिपोर्ट कहती है कि डोपामाइन वो कैमिकल है, जो आपको एक ही इंसान के बारे में सोचते रहने को मजबूर कर देता है. यही आपकी सोच को एक ही इंसान के इर्द-गिर्द समेटकर रख देता है.
जर्नल ऑफ पर्सनैलिटी एंड सोशल साइकोलॉजी के मुताबिक सेंट्रल नोरेपाइनफ्रिल नाम का का कैमिकल हमारे दिमाग की ऐसी सेटिंग बना देता है कि हमें सिर्फ अपने प्यार में खूबियां ही खूबियां दिखाता है और सारी दुनिया बेकार लगने लगती है.
दिल की धड़कन बढ़ना, सांसें तेज़ चलना, बेचैनी और तनाव के साथ साथ प्यार में लोगों नीदें उड़ जाती हैं और भूख मर जाती है. फिलॉसफी, साइकेट्री एंड साइकोलॉजी जर्नल की एक रिपोर्ट कहती है कि नशेड़ियों वाली ये आदतें प्यार के कैमिकल रिएक्शन की वजह से पैदा होती हैं.
मानवशास्त्री हेलेन कहती हैं कि डोपामाइन तेज़ी से आकर्षित करता है और जैसे ही उनमें कोई लड़ाई-झगड़ा होता है इस हॉर्मोन्स के न्यूरॉन्स और तेज़ी से सक्रिय होते हैं और आकर्षण दोगुना हो जाता है.
साल 2012 में साइकोफिजियोलॉजी जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी कहती है कि प्रेमी-प्रेमिकाओं का पोज़ेसिव होना और जुनूनी व्यवहार करना भी कैमिकल का ही असर है. दिमाग में सेरोटोनिन हॉर्मोन का स्तर कम होने से 85 फीसदी सोच पर एक ही शख्स का कब्ज़ा हो जाता है इंसान दिमागी तौर पर बीमारों जैसी हरकत करने लगता है.
दिमाग के अगले हिस्से में मौजूद सिंगुलेट गाइरिस नाम का हिस्सा एक्टिव होते ही इंसान की हालत किसी ड्रगिस्ट या नशेड़ी की तरह हो जाती है. उसकी भावनात्मक निर्भरता बढ़ती है और वो कमज़ोर होने लगता है.
फिर बारी आती है सेरोटोनिन के कम होकर ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन के बढ़ने की. ऐसे में इंसान और गहरे संबंध की कल्पना करता है और आगे की ज़िंदगी के सपने बनने लगता है. इतना ही नहीं मिरर न्यूरॉन्स के बढ़ने की वजह इंसान सहानुभूति के उच्च स्तर पर पहुंच जाता है और बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो जाता है.
आपने देखा होगा कि पार्टनर्स दूसरे की पसंद-नापसंद अपना लेते हैं. इसके पीछे भी टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन ही ज़िम्मेदार है क्योंक आप पार्टनर से बहुत ही गहराई से जुड़ जाते हैं.
हेलेन फिशर अपनी रिपोर्ट के बताती हैं कि रिलेशनशिप का अगला पड़ाव भावनात्मक से शारीरिक रिश्ते की ओर बढ़ता है. साल 2002 में की गई उनकी स्टडी बताती है कि 64 फीसदी लोगों ने प्यार में शारीरिक संबंधों को महत्व दिया. वैसे आपको जानकर हैरानी होगी कि कैमिकल्स का ये रिएक्शन ज्यादा लंबा नहीं चलता. ये कुछ महीनों या सालों बाद खत्म होने लगता है और आमतौर पर 3-4 साल के अंदर खत्म होने लगता है. यही वजह है कि प्यार में धोखा भी देने से लोग पीछे नहीं हटते.