ढाई साल पहले मिली करोड़ों की मूर्ति, सुपुर्दगी पर विवाद:रायपुर कलेक्टर का जैन समाज को प्रतिमा सौंपने का आदेश

रायपुर के आरंग के अंधियार खोप तालाब में सितंबर 2021 में गहरीकरण के दौरान मिली जैन तीर्थंकर की प्राचीन मूर्ति को लेकर विवाद गहरा गया है। रायपुर के तत्कालीन कलेक्टर सर्वेश्वर भूरे के 3 जनवरी 2024 के आदेश के मुताबिक इसे जैन समाज को दिया जाएगा। वहीं स्थानीय लोगों ने इस आदेश का विरोध करना शुरू कर दिया है।
पुरातत्वविद भी इस तरह की दुर्लभ प्राचीन मूर्ति पर सिर्फ पुरातत्व विभाग का एकाधिकार होने की बात कह रहे हैं। स्थानीय लोगों का भी कहना है कि इसे आरंग में ही संरक्षित किया जाए। वहीं तत्कालीन कलेक्टर सर्वेश्वर भूरे के मुताबिक यह प्रक्रिया नियमों के मुताबिक ही है। ऐसी चर्चा है कि इंटरनेशनल मार्केट में इस मूर्ति की कीमत 35 से 40 करोड़ रुपए होगी।
सितंबर 2021 में आरंग के अंधियार खूब तालाब में गहरीकरण के दौरान जैन तीर्थंकर की मूर्ति निकली थी। मूर्ति मिलने के बाद स्थानीय लोगों ने मूर्ति को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को सौंप दी थी। इसे ASI ने भाण्डलदेवल मंदिर आरंग में संरक्षित किया था।
मूर्ति निकलने के कुछ समय बाद दिगंबर जैन चंद्रगृह तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट डोंगरगढ़ की ओर से एक पत्र लिखा गया। इस पत्र में ट्रस्ट के कार्यकारी अध्यक्ष विनोद जैन बड़जात्या ने मूर्ति को पूजा-अर्चना के लिए सौंपे जाने की मांग की। इस पर तत्कालीन रायपुर DM सर्वेश्वर भूरे की कोर्ट ने ने आदेश पारित कर दिया। अब इस मूर्ति को डोंगरगढ़ के जैन समाज को देने का स्थानीय लोग विरोध कर रहे हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्राचीन मूर्ति को आरंग में ही रखा जाए या इसके लिए म्यूजियम बनाया जाए।
पुरातत्वविद पद्मश्री अरुण कुमार शर्मा का कहना है कि जो प्राचीन मूर्ति जमीन के अंदर से निकलती है, वह देश की धरोहर होती है। उस मूर्ति पर सिर्फ और सिर्फ पुरातत्व विभाग का एकाधिकार होता है। इसे म्यूजियम बनाकर लोगों के देखने के लिए रखा जा सकता है। खुदाई में निकली मूर्ति सिर्फ पुरातत्व विभाग के अधिकार क्षेत्र में ही आती है । पुरातत्व विभाग का काम उस मूर्ति को संरक्षित करने का होता है। पुरातत्व विभाग भी किसी संस्था को या व्यक्ति को पूजा-अर्चना के लिए प्राचीन मूर्ति नहीं दे सकता है।