डॉ सरवत खान को ए डी राही अवार्ड....डॉ सरवत खान के उपन्यास कड़वे करेले को 2022 का ए डी राही अवार्ड मिला

जोधपुर (डॉ अरविंद पुरोहित)। रविवार, मकर संक्रान्ति 15जनवरी की सर्द सुबह साढ़े दस बजे नेहरू पार्क के डागा भवन में तहजीब संस्था ने ए डी राही अवार्ड समारोह का आयोजन किया। यह अवार्ड उदयपुर की लेखिका डॉ सरवत खान के उपन्यास कड़वे करेले के लिए दिया गया।
उपन्यास पर तब्सिरा करते हुए डॉ इस्राकुल माहिर ने इस रचना को आदिवासियों के जीवन का आइना बताया,विशेषकर नायिका मूली के संघर्ष और दर्द की बात की। उन्होंने लेखिका की भाषा,तलफ्फुज और कलात्मक चित्रण पर रोशनी डाली।उन्होंने लेखिका को इस बात की मुबारकबाद भी दी कि उन्होंने बहुत बेबाकी से इस बात को उजागर किया है कि विकास के नाम पर पूंजीवादी ताकतें आदिवासियों का किस तरह से शोषण करती है।
लेखिका डॉ सरवत खान ने अपने वक्तव्य में समकालीन उपन्यास लेखन के परिदृश्य की चर्चा करते हुए इस बात को रेखांकित किया कि अभी तक राजस्थान या मारवाड़ की उपन्यास लेखन में उपेक्षा ही हुई है।अपनी लेखन प्रक्रिया के बारे में उनका कहना था कि जब तक लेखक रचना को जी नहीं लेता,उसकी सृजना सच्ची नहीं हो सकती।उनके काम ने उन्हें इस बात का अवसर दिया कि वे अपने उपन्यास की स्थितियों और पात्रों,यहां तक आदिवासी बस्तियों, जेल और कैदियों के साथ रह कर अनुभव प्राप्त करे फिर उनकी कलम से रचना उतरे।
समारोह के विशिष्ठ अतिथि मशहूर शायर और आलोचक शीन काफ निजाम ने हमेशा की तरह विषय के नए पक्षों को उजागर किया। उन्होंने कहा कि चाहे उपन्यास कहें या नाविल वह उस अतीत की स्मृति और भविष्य की कल्पना, जिसे हमने न तो भोगा है न देखा है, उसके नएपन को वह वर्तमान में अनुभव करना चाहता है। वह बीते कल और आने वाले कल को आज में जीना चाहता है। एक कारी, यानी पाठक पर एक कर्ज भी होता है और फर्ज भी। रचना के संभावित आयामों तक पहुंचना पाठक का फर्ज है।उन्होंने कहा कि इस उपन्यास पर चर्चा में नारीवादी,फेमिनिस्ट , आयाम पर चर्चा होनी चाहिए थी। और फेमिनिज्म कोई आज की बात नहीं है,वो तो हव्वा के वर्जित फल खाने और कुंती के गर्भ धारण के इनकार के वक्त से ही मौजूद है।फेमिनिज्म का उद्गम नारी का इनकार है, वही उसकी खुद मुख्त्यारी का ऐलान है।
जनाब ए डी राही , जो उनके परम मित्र और सखा थे, के बारे में उनका भावुक वक्तव्य इतना ही था कि वे राही साहब के बारे में कुछ कहना खुद के बारे में बोलने के समान ही मानते हैं, इसलिए ज्यादा नहीं बोलेंगे। समारोह के सद्र राजस्थान उर्दू अकादमी के अध्यक्ष हुसैन रजा खानअपने संबोधन में उपन्यास के शीर्षक में करेले के साथ कड़वे शब्द को कई उदाहरणों से सही बताया कि संज्ञा के साथ विशेषण का होना कोई पुनरावृत्ति दोष नहीं होता। उन्होंने लेखिका के खुद के संघर्ष की कहानी भी बताई कि किस तरह वे टोंक के नवाबों परंपरागत मुस्लिम परादादारी से आगे बढ़ते हुए तालीम हासिल की, प्रोफेसर बनी और आज देश की प्रसिद्ध लेखिकाओं में उनका शुमार है। आरंभ में तहजीब के सचिव नफासत अहमद ने मेहमानों का स्वागत किया और ए डी राही के जीवन, व्यतित्व और अदब की उनकी सेवाओ का परिचय दिया।
तहजीब के अध्यक्ष, सदर और मेहमाने खुसूसी ने लेखिका को सम्मानित कर अवार्ड दिया तो सभागार करतल ध्वनि से गूंज उठा, उससे भी ज्यादा तालियां उस वक्त बजी जब मरहूम राही साहिब की बेगम और उनके परिवार ने टोंक की बेटी, उदयपुर की रहवासी और जोधपुर की बहू डॉ सरवत खान को चुंदड़ी पहनाई। डॉ सरवत ने भी अपना संबोधन में उस चुनरी को पहने रखा। इस तरह उत्तरायण में गमन कर रहे सूर्य की साक्षी में साहित्य का एक उत्सव संपन्न हुआ।
कार्यक्रम के बाद डा अरुण के साथ बातचीत में हम दोनों ने यह महसूस किया कि इस तरह के प्रोग्राम हिंदुस्तान की गंगा जमनी तहजीब की परवरिश के लिए जरूरी है,और जहां शीन काफ निजाम जैसी अदबी शख्शियत रूबरू हो तो कार्यक्रम अदब की एक स्कूल बन जाता है जिसमें हर शिरकत करने वाला कुछ न कुछ नया सीख कर ही उठता है।