एक ऐसा मंदिर जहां पूजा करने के बाद महिलाएं नहीं ले जा सकती प्रसाद, प्रसाद खाने की भी मनाही....
जमुई जिले के सोनो प्रखंड के बटिया स्थित बाबा झुमराज स्थान मंदिर है. यहां एक महीने में 1.50 लाख तक श्रद्धालु पूजा करने आते हैं.

बिहार में कई प्रसिद्ध मंदिर है. जहां सालों भर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इन मंदिरों में महिला और पुरुष श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं, लेकिन बिहार में एक ऐसा भी मंदिर है जहां महिलाओं का आना जाना तो होता है, लेकिन महिलाओं को यहां का प्रसाद खाने की मनाही है. इतना ही नहीं इस मंदिर का एक विशेष प्रसाद होता है जिसे मंदिर परिसर में ही खाया जा सकता है, आप इसे घर नहीं ले जा सकते हैं. इतना ही नहीं यह मंदिर इतना प्रसिद्ध है कि केवल जमुई ही नहीं बल्कि आसपास के कई जिलों से लोग यहां बड़ी संख्या में पूजा करने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मन्नत भी पूरी होती है.
जमुई जिले के सोनो में अवस्थित है यह अतिप्रसिद्ध मंदिर
दरअसल, हम बात कर रहे हैं जमुई जिले के सोनो प्रखंड क्षेत्र के बटिया स्थित बाबा झुमराज स्थान मंदिर की. इसकी ख्याति इतनी है कि यहां एक महीने में 1.50 लाख तक श्रद्धालु पूजा करने आते हैं. इस मंदिर के स्थापना के पीछे एक बड़ी रोचक कहानी है. मंदिर के पुजारी तालेवर सिंह ने बताया कि एक वक्त हरिद्वार के कुछ पुजारियों का जत्था इस होकर गुजर रहा था. उनमें से एक पुजारी जो सबसे पीछे चल रहे थे, उसपर बाघ ने हमला किया और उसे मार दिया. जिस जगह ये घटना हुई वो जंगली इलाका था. इस कारण उनके साथी उन्हें उसी हाल में छोड़कर चले गए.
काफी समय बाद एक किसान वहां खेती करने आया. उसने वहां पड़े उस पुजारी के कंकाल को जमा कर उसे जला दिया और जमीन को साफ कर उसपर मडुआ की फसल लगाई. जब फसल तैयार हो गई, तब किसान ने अपनी फसल काट ली और घर चला आया.
अगले दिन जब वह अपने खेतों की तरफ आया तो उसने देखा कि वहां उसके खेतों में मडुआ की फसल अभी भी लहलहा रहें हैं. उसने दूसरे दिन भी फसल काटी और अगले दिन उसने फिर देखा कि उसके खेतों में फसल लहलहा रहे है, लगातार कई दिनों तक ऐसा चलता रहा तो उसने प्रार्थना की और इसका कारण पूछा. तभी वहां वो पुजारी प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि मैं पिछले कई साल से यहां भटक रहा था. मेरे साथियों ने मेरा साथ छोड़ दिया था पर तुमने मुझे अग्नि प्रदान किया है.
इसके बाद उन्होंने कहा कि मैं हर किसी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करूंगा, इसके बाद उस किसान तथा गांव के अन्य लोगों के द्वारा मिट्टी का एक पिंड स्थापित कर उनकी पूजा अर्चना शुरू कर दी गई, जो आज भी जारी है.