खास समाचार : व्यभिचार में रहने वाली पत्नी को नहीं मिलेगा भरण-पोषण: हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
देवर से संबंधों के आधार पर मिली तलाक की डिक्री; हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए 4000 मासिक भरण-पोषण के आदेश को किया खारिज

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि पत्नी विवाहेतर संबंधों में लिप्त पाई जाती है और इसी आधार पर उसे तलाक दिया गया है, तो वह पति से भरण-पोषण की हकदार नहीं रहेगी। कोर्ट ने रायपुर फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए महिला को दी गई आर्थिक सहायता समाप्त कर दी है।
रायपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में यह व्यवस्था दी है कि व्यभिचार (एडल्ट्री) में रहने वाली पत्नी, जिसे इसी आधार पर तलाक मिल चुका हो, वह अपने पति से भरण-पोषण की मांग नहीं कर सकती। कोर्ट ने रायपुर फैमिली कोर्ट द्वारा महिला को मासिक ₹4000 भरण-पोषण दिए जाने के आदेश को रद्द कर दिया है।
यह मामला रायपुर के एक युवक से जुड़ा है, जिसकी शादी वर्ष 2019 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई थी। कुछ समय बाद पत्नी ने पति पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाते हुए घर छोड़ दिया और अपने भाई के घर जाकर रहने लगी। पत्नी ने फैमिली कोर्ट में भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका लगाई थी।
वहीं, पति ने कोर्ट को बताया कि उसकी पत्नी के उसके छोटे भाई यानी देवर के साथ नाजायज संबंध हैं। इसके अलावा उसने आरोप लगाया कि पत्नी अन्य पुरुषों से भी संपर्क में थी और उसने झूठे प्रकरणों में फंसाने की धमकी दी थी।
फैमिली कोर्ट ने पति की दलीलों और साक्ष्यों को स्वीकार करते हुए तलाक की डिक्री पति के पक्ष में पारित की। हालांकि, कोर्ट ने पत्नी को राहत देते हुए 4000 रुपए मासिक भरण-पोषण देने का भी आदेश दे दिया था।
इस आदेश को लेकर दोनों पक्ष हाईकोर्ट पहुंचे। पत्नी ने पति की आय का हवाला देते हुए भरण-पोषण की राशि बढ़ाने या 10 लाख रुपए एकमुश्त दिलवाने की मांग की, जबकि पति ने कहा कि व्यभिचार में रहने वाली पत्नी को किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं मिलनी चाहिए।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि जब कोर्ट तलाक की डिक्री व्यभिचार के आधार पर दे चुका है, तो पत्नी को भरण-पोषण की पात्रता नहीं रह जाती। न्यायालय ने यह भी कहा कि तलाक का निर्णय साक्ष्यों पर आधारित था और उसे किसी भी पक्ष ने चुनौती नहीं दी। अतः फैमिली कोर्ट का भरण-पोषण संबंधी निर्णय तर्कसंगत नहीं था।