सिगरेट पीने से सिकुड़ता दिमाग, जल्दी आता बुढ़ापा:स्मोकिंग छोड़ने पर भी पुराने आकार में नहीं लौटता मस्तिष्क...

सिगरेट पीने से सिकुड़ता दिमाग, जल्दी आता बुढ़ापा:स्मोकिंग छोड़ने पर भी पुराने आकार में नहीं लौटता मस्तिष्क...

दुनिया का कोई ऐसा स्मोकर नहीं है, जो यह नहीं जानता हो कि सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। सिगरेट के पैकेट पर बोल्ड अक्षरों में वॉर्निंग लिखी होती है- कैंसर वाले गले और फेफड़ों के फोटो के साथ। सिनेमा हॉल में कोई भी फिल्म देखने जाइए, पहले वो आपको बताएंगे कि सिगरेट पीने से फेफड़ों का कैंसर हो गया और इसी के साथ फिल्म का मूड भी खराब कर देंगे। बहरहाल, मूड खराब होना जरूरी भी है। हर स्मोकर को हर कदम पर यह याद दिलाना जरूरी है कि वो अपनी सेहत के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ कर रहा है। डॉक्टर्स, रिसर्चर्स नई स्टडीज के साथ समय-समय पर यह याद दिलाते ही रहते हैं।

सिगरेट पीने से सिकुड़ता है मस्तिष्क

इस संबंध में एक नई स्टडी आई है। जर्नल ‘बायोलॉजिकल साइकिएट्री: ग्लोबल ओपन साइंस’ में प्रकाशित इस मेडिकल स्टडी के मुताबिक धूम्रपान का असर हमारे मस्तिष्क पर भी होता है। यह स्टडी सेंट लुइस स्थित वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन के रिसर्चर्स ने की है। इस स्टडी के मुताबिक सिगरेट पीने वाले लोगों का मस्तिष्क सिकुड़ जाता है। अगर आप एक वक्त के बाद सिगरेट पीना छोड़ दें तो मस्तिष्क को आगे होने वाले नुकसान से तो बचा जा सकता है, लेकिन इससे सिकुड़ा हुआ मस्तिष्क दोबारा अपने पुराने आकार में नहीं लौटेगा।  शोधकर्ताओं ने अपनी स्टडी में पाया कि लंबे समय तक सिगरेट पीने के बाद जिन लोगों ने स्मोकिंग छोड़ दी थी और उन्हें छोड़े हुए भी काफी वक्त गुजर चुका था, उनके मस्तिष्क का आकार स्थाई रूप से छोटा हो गया था यानी सिगरेट छोड़ने के बाद भी मस्तिष्क अपने पुराने आकार में वापस नहीं लौटा।

वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन में साइकिएट्री डिपार्टमेंट की प्रोफेसर लाउरा जे. बेरुत कहती हैं कि मस्तिष्क के सिकुड़ने और अपने पुराने आकार में वापस लौटने का अर्थ है कि एक सामान्य व्यक्ति के मुकाबले धूम्रपान करने वाले व्यक्ति की एजिंग ज्यादा जल्दी होगी। यानी अगर आप सिगरेट पीते हैं तो आप वक्त से पहले बूढ़े हो जाएंगे।

इस साल अप्रैल में ‘medRxiv डेटाबेस’ में एक और रिसर्च प्रकाशित हुई, जिसमें वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन के कई डिपार्टमेंट ने साथ मिलकर काम किया था। डिपार्टमेंट ऑफ साइकिएट्री, रेडियोलॉजी और ब्रेन साइंस के प्रोफेसर्स का यह संयुक्त अध्ययन था, जिसमें 28000 लोगों को सब्जेक्ट बनाकर उनकी डीटेल स्टडी की गई। स्टडी का सैंपल साइज काफी वृहद था।

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अप्रैल में प्रकाशित इस स्टडी के पीयर रिव्यू से पहले दुनिया के जाने-माने न्यूरोसाइंटिस्ट्स की इस स्टडी पर गंभीर प्रतिक्रियाएं आईं। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में न्यूरोबायोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर एंड्रयू ह्यूबरमन ने इस स्टडी को मेडिकल साइंस के लिए एक जरूरी और रेवोल्यूशनरी कदम बताया। अमेरिका के सेलिब्रटी साइकिएट्रिस्ट और न्यूरोसाइंटिस्ट डॉ. डैनियल एमिन ने लिखा, “विज्ञान अब तक शरीर के विभिन्न अंगों का इस तरह अध्ययन करता रहा है, मानो वो एक-दूसरे से बिलकुल अलग कोई स्वतंत्र चीज हैं। जैसे अगर स्मोकिंग में प्राइमरी तौर पर हमारे फेफड़े इन्वॉल्व होते हैं तो इसका असर सिर्फ फेफड़ों पर ही होगा। जबकि आधुनिक विज्ञान यह कहता है कि शरीर में होने वाली कोई भी गतिविधि हमारे मस्तिष्क पर सीधे असर डालती है।”

प्रोफेसर लाउरा जे. बेरुत भी कहती हैं कि इस स्टडी के पीछे आधुनिक विज्ञान की यह नई अप्रोच ही है कि हमारा पूरा शरीर एक-दूसरे से जुड़ा है। शरीर के किसी एक हिस्से में हो रही गतिविधि का प्रभाव दूसरे हिस्से पर भी पड़ेगा। जबकि स्मोकिंग से जुड़ी पुरानी रिसर्च सिर्फ इस बात की पड़ताल करती रहीं कि स्मोकिंग हमारे फेफड़ों और रक्त वाहिकाओं को कैसे नुकसान पहुंचाती है। जबकि इस दौरान हमें ये पता नहीं था कि स्मोकिंग से हमारा मस्तिष्क सबसे ज्यादा नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहा था।

सिगरेट छोड़ने का संकल्प तो लगभग सभी स्मोकर लेते रहते हैं, बावजूद सिगरेट नहीं छूटती। इसकी सबसे अहम वजह 'विड्रॉल सिम्पटम', यानी सिगरेट छोड़ने के बाद होने वाला असर है, जो लगभग 1 सप्ताह तक रह सकता है।​ इस पीरियड के बाद बॉडी और माइंड को सिगरेट की तलब नहीं होती।

स्मोकर्स को अल्जाइमर्स का खतरा ज्यादा

साथ ही यह स्टडी यह भी कहती है कि सिगरेट पीने वाले लोगों को ब्रेन डिक्लाइन और अल्जाइमर्स का खतरा ज्यादा होता है। जाहिर है, अगर स्मोकिंग ब्रेन साइज और न्यूरॉन्स को खराब कर रही है तो एक स्मोकर को हर वह बीमारी होने का रिस्क ज्यादा होगा, जिसका सीधा संबंध हमारे मस्तिष्क से है।