अंगदान से अमर हुए डॉक्टर प्रशांत, दो मरीजों को मिली नई शुरुआत

दुर्ग के आरोग्यम अस्पताल में ब्रेनडेड डॉक्टर प्रशांत सिंह के अंगदान से दो मरीजों को मिली नई जिंदगी, संभाग में पहली बार ब्रेनडेड किडनी डोनेशन का मामला दर्ज

अंगदान से अमर हुए डॉक्टर प्रशांत, दो मरीजों को मिली नई शुरुआत

एक डॉक्टर का जीवन दूसरों की सेवा में बीतता है, लेकिन डॉ. प्रशांत सिंह ने मृत्यु के बाद भी सेवा का सिलसिला नहीं तोड़ा। दुर्ग के आरोग्यम सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में ब्रेनडेड घोषित होने के बाद, उनके परिजनों ने अंगदान का निर्णय लेकर दो लोगों की जिंदगी बचा ली। यह न सिर्फ चिकित्सा क्षेत्र, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन गया है।

दुर्ग। आरोग्यम सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल में पदस्थ डॉ. प्रशांत सिंह ने अपने जीवन में अनेक मरीजों का इलाज कर नई जिंदगी दी। लेकिन उनके जाने के बाद भी सेवा का यह सफर रुका नहीं। ब्रेनडेड घोषित होने के बाद, उनके परिवार ने संवेदनशील निर्णय लेते हुए दोनों किडनियां अंगदान करने की अनुमति दी। ये दोनों किडनियां दो गंभीर रूप से बीमार मरीजों को दी गईं, जो वर्षों से डायलिसिस पर थे। अब वे स्थिर हैं और स्वस्थ जीवन की ओर अग्रसर हैं।

यह संभवतः दुर्ग संभाग का पहला मामला है, जब किसी ब्रेनडेड मरीज से अंग सुरक्षित निकालकर सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण के लिए भेजा गया। यह उपलब्धि केवल चिकित्सा क्षेत्र में नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना के क्षेत्र में भी एक मील का पत्थर मानी जा रही है।

डॉ. नवीन राम दारुका और डॉ. साहू ने इस प्रक्रिया में परिवार को समझाते हुए अंगदान की महत्ता बताई। अस्पताल की ट्रांसप्लांट यूनिट ने त्वरित कार्रवाई करते हुए किडनियों को सुरक्षित निकाला और निर्धारित अस्पतालों में पहुंचाया।

इस महादान ने दो परिवारों के जीवन में नई उम्मीद जगा दी। मरीजों के परिवार अब डॉक्टर प्रशांत सिंह और उनके परिवार के इस निर्णय को किसी चमत्कार से कम नहीं मान रहे। अस्पताल के स्टाफ और समाजजनों ने उन्हें सच्चा चिकित्सक और मानवता का प्रतीक बताया।

अस्पताल प्रबंधन ने कहा—

 “डॉ. प्रशांत ने जीवनभर मानव सेवा की और अब अपने अंगों से दो ज़िंदगियों को बचाकर समाज में अमर हो गए हैं।”

इस घटना ने अंगदान को लेकर समाज में जागरूकता की ज़रूरत पर ज़ोर डाला है। आज भी देश में लाखों मरीज जीवन रक्षक अंगों के इंतजार में हैं, परंतु जागरूकता की कमी और सामाजिक भ्रांतियों के कारण समय पर अंग नहीं मिल पाते।