बलदेव षष्ठी या हल छठ आज या कल? नोट करें पूजन साम्रगी, इस सरल विधि से करें पूजा, जानें महत्व
सनातन धर्म में बलदेव षष्ठी या हल छठ का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, बलदेव का प्रिय शस्त्र हल था. उन्हें हलधर के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन दीवार पर ऐपण से किसान, बैल और छठ माता बनाई जाती है और उनकी पूजा की जाती है.

Hal Chhat ya Balram Jayanti 2023 : हिंदू पंचांग के अनुसार, बलदेव षष्ठी या हल छठ की शुरुआत भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि यानी आज (4 सितंबर 2023) शाम 04:41 बजे हो जाएगी. वहीं, इसका समापन अगले दिन 5 सितंबर 2023 को दोपहर 03:46 बजे होगा. हर छठ या हल छठ व्रत सनातन धर्म में पुत्रवती स्त्रियों द्वारा रखा जाता है. यह पर्व मुख्य तौर पर उत्तर भारत में मनाया जाता है. इस व्रत में महिलाएं अपने पुत्र की लंबी आयु के लिए भगवान गणेश और माता पार्वती से प्रार्थना करती है. बलराम जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला हल छठ किसानों के लिए विशेष महत्व रखता है. बलदेव भगवान कृष्ण के बड़े भाई थे, जिनका प्रिय शास्त्र हल था. इन्हें हलधर के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन किसानों और बैलों की पूजा की जाती है. बलदेव षष्ठी या हल छठ का त्योहार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी सेवा वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
पूजन सामग्री
- भैंस का दूध, घी, दही गोबर.
2. महुए का फल, फूल, पत्ते
3. जवार की धानी
4. ऐपण
5. मिट्टी के छोटे कुल्हड़
6 देवली छेवली.
हल छठ पूजा विधि
हल छठ वाले दिन वाले दिन सुबह जल्टी उठ कर महुए की दातून से दांत साफ करें.
स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें.
इस व्रत को पुत्रवती महिलाएं ही करती हैं.
अब पूजा घर में भैंस के गोबर से दिवार पर छठ माता का चित्र बनाएं.
इसके अलावा हल, सप्त ऋषि, पशु, किसान कई चित्र बनाने की परंपरा है.
अब घर में तैयार ऐपण से इनकी पूजा की जाती है.
चौकी पर तांबे या पीतल का कलश रखें, अब भगवान गणेश और माता पार्वती को स्थापित करें और इनकी पूजा करें.
इसके बाद मिट्टी के कुल्हड़ में ज्वार की धानी और महुआ भरें.
अब एक मटकी में देवली छेवली रखें.
अब हल छठ माता की पूजा करें.
उसके बाद कुल्हड़ और मटकी की पूजा करें.
अब हल छठ की कथा पढ़कर माता पार्वती की आरती करें.
आरती करने के बाद उसी स्थान पर बैठकर महुए के पत्ते पर महुए का फल भैंस के दूध से निर्मित दही के खाएं.
इस दिन बिना हल से जुते खाद्य पदार्थ खाने की परंपरा है.
हल छठ व्रत का महत्व
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, जब बच्चे का जन्म होता है तब से लेकर छः महीने तक छठी माता ही बच्चे की देखभाल करती हैं. वहीं बच्चे को हंसाती हैं, उसका पूरा ध्यान रखती हैं. यही कारण है कि बच्चे के जन्म के छः दिन बाद छठी माता की पूजा की जाती हैं. हल छठ माता को ही बच्चों की रक्षा करने वाली माता कहते हैं.