शहीद चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती पर श्रद्धांजलि: देशभक्ति, बलिदान और आत्मबल के प्रतीक को नमन
'आजाद ही रहे, आजाद रहेंगे'—प्रयागराज के शहीद उद्यान में पुष्पांजलि, उनकी अधूरी ख्वाहिशें और प्रेरणादायक जीवन यात्रा को याद किया गया

23 जुलाई—यह दिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महानायक चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती के रूप में हर भारतीय के लिए गर्व और प्रेरणा का दिन है। प्रयागराज स्थित शहीद उद्यान (अल्फ्रेड पार्क) में आज़ाद की प्रतिमा पर समाजसेवी प्रशांत कुमार शिरसागर सहित परिजनों ने पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। प्रतिमा पर चंदन-तिलक, माल्यार्पण के साथ राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत भावनाओं को अभिव्यक्त किया गया।
भिलाई। भारत के वीर सपूत पंडित चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के भाबरा गांव (अब आजाद नगर) में हुआ था। बचपन से ही उनमें देशप्रेम की ज्वाला थी, जिसने उन्हें कम उम्र में ही आजादी के आंदोलन में कूदने को प्रेरित किया। वाराणसी में असहयोग आंदोलन के दौरान 15 वर्ष की उम्र में गिरफ्तार होने पर उन्होंने अपना नाम "आजाद", पिता का नाम "स्वतंत्रता" और निवास "जेल" बताया था। यहीं से वे ‘चंद्रशेखर आज़ाद’ बन गए।
प्रयागराज के ऐतिहासिक अल्फ्रेड पार्क (अब शहीद उद्यान) में उनकी प्रतिमा के पास आज भी एक 200 साल पुराना 'पारिजात वृक्ष' है, जिसे आस्था का केंद्र माना जाता है। श्रद्धालु यहां सुख-समृद्धि की कामना करते हैं और आज़ाद के बलिदान को प्रणाम करते हैं।
आज़ाद की दो बड़ी ख्वाहिशें अधूरी रह गईं—पहली, रूस जाकर स्टालिन से मिलकर आज़ादी की रणनीति बनाना, लेकिन आर्थिक तंगी के कारण वे कभी वहां नहीं जा सके। दूसरी, भगत सिंह को फांसी से बचाना, जिसके लिए उन्होंने अथक प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हो सके।
'यारों के यार' कहे जाने वाले आज़ाद इतने संवेदनशील थे कि एक बार अपने मित्र के परिवार की मदद के लिए पुलिस के सामने आत्मसमर्पण तक को तैयार हो गए, ताकि उनके सिर पर रखा इनाम मित्र के काम आ सके। 27 फरवरी 1931 को प्रयागराज के इसी पार्क में अंग्रेजों से घिरे आज़ाद ने अंतिम गोली खुद पर चलाकर आत्मबलिदान दिया। उनका दृढ़ संकल्प था—"दुश्मन की गोली का हम सामना करेंगे, आज़ाद थे, आज़ाद रहेंगे!"