सेहत और पर्यावरण के लिए फायदेमंद भी हो सकती है होली, लेकिन...

होली का त्‍योहार नजदीक आते ही पर्यावरण कार्यकर्ता पानी की बर्बादी रोकने और होलिका दहन के लिए हरे पेड़ों को नहीं काटने की सलाह देते हैं. ज्‍यादातर पर्यावरण कार्यकर्ता कहते हैं कि होली पर पर्यावरण को कई तरह से नुकसान होता है. ऐसे में अगर हम थोड़ी सी सावधानी बरतें तो होली का त्‍योहार हमारी और पर्यावरण की सेहत के लिए फायदेमंद भी साबित हो सकता है.

सेहत और पर्यावरण के लिए फायदेमंद भी हो सकती है होली, लेकिन...

Holi Special: होली का त्‍योहार नजदीक आते ही आसपास का माहौल रंगों से सराबोर महसूस होने लगता है. होली के दिन लोग एकदूसरे को रंग और गुलाल लगाकर जश्‍न मनाते हैं. वहीं, देशभर में लोग एकदूसरे को रंगभरे पानी से तरबतर कर देते हैं. वहीं, पर्यावरण को बचाने की मुहिम में जुटे लोगों को हालिका दहन के लिए काटे जाने वाले हरे पेड़ों और होली खेलने में इस्‍तेमाल होने वाले पानी को बचाने की चिंता सताने लगती है. इसके उलट लोग सिर्फ एक दिन की होली होने का तर्क देते हैं. दोनों अपनी-अपनी जगह सही हैं. भारत में हर त्‍योहार को पूरे जोश से मनाने की परंपरा है. ऐसे में अगर हम थोड़ा सी सावधानी बरतें तो रंगों का ये त्‍योहार हमारी और पर्यावरण दोनों की सेहत के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है.

होली का त्‍योहार इस बार 8 मार्च 2023 यानी बुधवार को है. इस समय बाजारों में त्‍योहार की खरीदारी जोरों पर है. हर तरफ गुलाल के ढेर, तरह तरह के रंग और पिचकारियां नजर आ रही हैं. बच्‍चों की होली तो अभी से शुरू हो चुकी है. ये त्‍योहार तन और मन में अलग ही ऊर्जा का संचार करता है. देशभर में अलग-अलग तरह से होली मनाई जाती है. लोग अपनी-अपनी परंपराओं और प्रथाओं के हिसाब से होली मनाते हैं. ये त्‍योहार जितना हमारी परंपरा और आस्‍था से जुड़ा है, उतना ही हमारी सेहत से भी इसका सरोकार है. जरूरी है कि हम सही तरीके से होली का जश्‍न मनाएं.

सेहत के लिए कैसे फायदेमंद है रंगों का त्‍योहार
देश में पहले फूलों के रंगों से होली खेली जाती थी. समय के साथ अलग-अलग तरह से होली के रंग बनाए जाने लगे. फिर कैमिकल्‍स का इस्‍तेमाल कर रंग बनाए गए, जिनसे लोगों को स्किन और आंखों से जुड़ी समस्‍याएं भी हुईं. जनरल फिजीशियन डॉक्‍टर मोहित सक्‍सेना का कहना है कि अगर हम फूलों के रंग से होली खेलते हैं तो इसका हमारे मन और शरीर पर बहुत अच्‍छा असर पड़ता है. उनके मुताबिक, अगर हम फूलों के रंग से होली खेलेंगे तो स्किन के लिए भी फायदेमंद होगा. वहीं, कैमिकल कलर्स से होली खेलने से हमारी स्किन और आंखों में इरिटेशन की दिक्‍कत होती है. वहीं, अस्‍थमा के मरीजों के लिए रंग काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं. इसके उलट अगर वे फ्रेगरेंस इंटॉलरेंट नहीं हैं तो फूलों के रंग से उन्‍हें कोई दिक्‍कत नहीं होगी.

गर्मियों की तपिश के लिए तैयार होता है शरीर
डॉ. सक्‍सेना कहते हैं कि अगर हम फूलों के रंगों से होली खेलते हैं तो हमारी स्किन गर्मियों की तपिश के लिए तैयार हो जाती है. वह कहते हैं कि होली का त्‍योहार साल में एक बार आता है. लिहाजा, पूरे जोश के साथ पानी से एकदूसरे को भिगाएं. लेकिन, पर्यावरण की चिंता को कम करने के लिए पानी का बहुत ज्‍यादा इस्‍तेमाल करने से बचना चाहिए. वहीं, हालिका दहन के लिए हरे पेड़ों को काटने के बजाय लोगों को अपने घरों में पड़ी बेकार लकड़ी का इस्‍तेमाल करना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हो पाता तो चंदा इकट्ठा करके लकड़ी की टाल से होली तैयार करनी चाहिए. ध्‍यान रखें कि हरे पेड़ धरती और इंसानों के लिए जीवनदायनी ऑक्‍सीजन छोड़ते हैं. साथ ही गर्म हवाओं को रोकने का काम भी करते हैं.

कैसे खेलें होली कि स्‍वास्‍थ्‍य रहे दुरुस्‍त?
दिल्‍ली के एलएनजेपी अस्‍पताल में डॉ. नरेश कुमार का कहना है कि होलिका दहन के समय पैदा होने वाली गर्मी के कारण वातावरण में कुछ दूरी तक मौजूद बैक्‍टीरिया नष्‍ट हो जाते हैं. वह कहते हैं कि सांस से जुड़े मरीजों को गुलाल से होली खेलने से बचना चाहिए. वह कहते हैं कि अगर किसी को त्‍वचा की एलर्जी और श्‍वांस से जुड़ी समस्‍याएं हैं तो बेहतर होगा वे होली ना खेलें. लेकिन, अगर खेलना ही है तो रंगों के बजाय केवल पानी से होली खेल सकते हैं. इससे वे होली का आनंद भी ले पाएंगे और उनको दिक्‍कत भी नहीं होगी. डॉ. सक्‍सेना कहते हैं कि होली का त्‍योहार ऐसे मौसम में आता है, जब ना तो बहुत ठंड होती है और ना ही ज्‍यादा गर्मी होती है. करीब-करीब पूरे देश में एक जैसा मौसम होता है. ये मौसम सर्दी के आलस को भी दूर करता है. लेकिन, जिन लोगों को सर्दी से जुड़ी समस्‍याएं रहती हैं, वे पानी के बजाय गुलाल से होली खेलें.

कैसे पर्यावरण के लिए फायदेमंद होगा होलिका दहन?
हरिद्वार के याज्ञवल्‍य केंद्र में हवन, हवन सामग्री और उसके विभिन्‍न पहलुओं पर शोध कर रहे शोधकर्ताओं ने बताया कि अगर होलिका दहन से स्‍वास्‍थ्‍य व पर्यावरण को फायदा पहुंचाना है तो हमें कुछ चीजों का विशेष ध्‍यान रखना चाहिए. एक शोधकर्ता डॉ. देवाशीष गिरी ने बताया सबसे पहले तो अगर आपके आसपास तैयार की जा रही होली में कूड़ा-कचरा, प्‍लास्टिक कचरा, हरे पेड़ों का इस्‍तेमाल किया जा रहा है तो ये गलत है. अगर आप होली में नीम या आम या अरंडी या अन्य औषधियों के पेड़ की लकड़ी और गाय के गोबर से बने उपलों के साथ हवन में इस्‍तेमाल होने वाली विभिन्‍न औषधीय सामग्री का इस्‍तेमाल करते हैं तो ये पर्यावरण के लिए फायदेमंद होगा. उनके मुताबिक, आम, नीम और अरंडी की लकड़ी जलाने पर वॉलेटाइल ऑयल्‍स निकलते हैं, जो हवा में मिलकर पर्यावरण को फायदा पहुंचाते हैं.

होली जलाना स्‍वास्‍थ्‍य के लिए फायदेमंद कैसे होगा?
शोधकर्ताओं ने बताया कि उनके शोध केंद्र में 1979 से हवन के विभिन्‍न पहलुओं पर शोधकार्य चल रहा है. वहीं, 2002 से हवन में इस्‍तेमाल होने वाली औषधीय सामग्रियों पर शोध शुरू हुआ. अब 30 तरह की अलग-अलग सामग्रियों का घर में हवन कर डायबिटीज समेत दर्जनों बीमारियों का इलाज किया जाता है. उन्‍होंने बताया कि मरीज बताई गई औषधी से नियमित अपने घर में हवन करते हैं. इससे औषधीय धूम्र उनके श्‍वसनतंत्र के जरिये शरीर में पहुंचता है और फायदा पहुंचाता है. उनका कहना है कि जब हम किसी मरीज को कोई औषधी खाने के लिए देते हैं तो उसे पचाने में वक्‍त और ऊर्जा दोनों लगती हैं. वहीं, धूम्र के जरिये औषधी शरीर में पहुंचकर तेजी से फायदा पहुंचाती है. ऐसे में अगर होली में आम, नीम या अरंडी की लकड़ी के साथ औषधीय सामग्री को जलाया जाएगा तो निश्चित तौर पर एकसाथ काफी लोगों को उसका फायदा मिलेगा.