"परिस्थितियों से हार नहीं, उनसे तालमेल बनाना ही सच्ची शक्ति है" – राजयोगी राजू भाई

"परिस्थितियों से हार नहीं, उनसे तालमेल बनाना ही सच्ची शक्ति है" – राजयोगी राजू भाई
  • पीस ऑडिटोरियम, भिलाई में दो दिवसीय ‘योग तपस्या कार्यक्रम’
  • “अंतिम समय की तैयारी” विषय पर ब्रह्माकुमार राजू भाई का मार्गदर्शन
  • आत्मबल, क्षमा और सकारात्मक चिंतन को बताया सफलता का मूलमंत्र

"जिन्हें स्वयं पर नियंत्रण है, वही दुनिया को समझ पाते हैं" – इस भाव को लेकर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा भिलाई के सेक्टर-7 स्थित पीस ऑडिटोरियम में दो दिवसीय ‘योग तपस्या कार्यक्रम’ आयोजित किया गया। अंतर्राष्ट्रीय मुख्यालय माउंट आबू से पधारे वरिष्ठ राजयोगी ब्रह्माकुमार राजू भाई ने “अंतिम समय की तैयारी” विषय पर अपने प्रेरणादायक विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने आत्मिक बल, समय की कद्र और सकारात्मक संकल्पों को जीवन की सबसे बड़ी पूंजी बताया।

भिलाई। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राजयोगी राजू भाई ने कहा कि "जितना अधिक हम दुनिया की बातों में उलझेंगे, उतना ही मन अस्थिर होगा।" इसलिए मन को मजबूत करने के लिए केवल ईश्वर की आवाज़ सुनना ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि नाम, मान और शान की चाह, अधपके फल के समान है — इससे आत्मा कभी तृप्त नहीं होती।

उन्होंने समझाया कि जीवन में आर्थिक, मानसिक, पारिवारिक व शारीरिक चुनौतियाँ आना स्वाभाविक है, लेकिन हमें आत्मिक स्थिति को ज्ञान और योग से सशक्त बनाना है। समय का महत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि “जैसे किसान समय पर बीज बोता है, तभी फसल मिलती है — वैसे ही समय पर आत्मिक पुरुषार्थ ज़रूरी है।” राजू भाई ने “कर्म और विकर्म” की गूढ़ गति को समझने का आह्वान करते हुए कहा कि सदैव श्रेष्ठ कर्म करने से ही श्रेष्ठ भविष्य निर्मित होता है।

राजयोग के अभ्यास के रूप में उन्होंने “स्व की श्रेष्ठ स्थिति” यानी स्वास्तिक का उल्लेख किया और कहा कि “मैं आत्मा हूं, यह पावन संकल्प ही हमें निर्भय और शक्तिशाली बनाता है।”

उन्होंने आगे कहा कि अक्सर हम दूसरों की कमियों को देखकर आलोचना करते हैं, लेकिन आत्म चिंतन कर अपनी कमज़ोरियों को देखना ही सच्ची साधना है। क्षमा के महत्व पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि यदि किसी को बदलना है, तो सबसे पहले स्वयं क्षमा करना सीखें। उन्होंने बताया कि “यह सब निर्दोष हैं” जैसी उच्च भावना अगर मन में हो, तो न सिर्फ स्वयं का, बल्कि दूसरों का भी परिवर्तन संभव है। अंत में उन्होंने कहा, “सबसे बड़ी शक्ति परिस्थितियों से भागने की नहीं, उनके साथ तालमेल बैठाने की होती है। यही सच्चा राजयोग है।”