साँची विवि में मोदी युग और अमृतकाल पर मंथन, प्रो. संजय द्विवेदी ने साझा किए विचार

लेखक-शिक्षाविद् ने कहा—मोदी ने जगाई उम्मीदें, स्थायी विकास की राह पर बढ़ रहा भारत; छात्रों से गांधी दर्शन और मीडिया साक्षरता अपनाने का आह्वान

साँची विवि में मोदी युग और अमृतकाल पर मंथन, प्रो. संजय द्विवेदी ने साझा किए विचार

भोपाल। साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में सेवा पर्व-2025 के अंतर्गत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रित पुस्तकों ‘मोदी युग–संसदीय लोकतंत्र का नया अध्याय’ और ‘अमृतकाल में भारत’ पर विशेष चर्चा हुई। पुस्तक लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार-शिक्षाविद् प्रो. संजय द्विवेदी ने संवाद के दौरान कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की नई छवि गढ़ी है और देश को स्थायी विकास की दिशा दी है।

साँची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में सोमवार को सेवा पर्व-2025 के अंतर्गत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर केंद्रित दो पुस्तकों ‘मोदी युग–संसदीय लोकतंत्र का नया अध्याय’ और ‘अमृतकाल में भारत’ पर विशेष परिचर्चा का आयोजन हुआ। कार्यक्रम में पुस्तक लेखक, वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् प्रो. संजय द्विवेदी ने छात्रों और शिक्षकों से अपने विचार साझा किए।

संवाद के दौरान प्रो. द्विवेदी ने कहा कि 2014 से पहले ही उन्होंने भविष्यवाणी कर दी थी कि श्री नरेंद्र मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री होंगे। अन्ना हज़ारे आंदोलन के बाद मोदी एक ऐसे नेता के रूप में उभरे, जिन्होंने जनता में नई उम्मीद जगाई और सामाजिक व राजनीतिक स्तर पर ‘सोशल इंजीनियरिंग’ को धरातल पर उतारा। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को मजबूत किया है और देश को स्थायी विकास की दिशा में अग्रसर किया है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पूछे गए सवाल के जवाब में प्रो. द्विवेदी ने कहा कि संघ को समझने के लिए तर्क से अधिक भाव की ज़रूरत है। संघ किसी विशेष विचारधारा से नहीं, बल्कि भारतीयता और आचरण से संचालित होता है। उन्होंने उपभोक्तावाद और आकांक्षावाद को समाज की पीड़ा का कारण बताया और गांधी जी के दर्शन को आत्मसात करने की आवश्यकता पर बल दिया। छात्रों को उन्होंने सुधीर चंद्रा की पुस्तक ‘गांधी: एक असंभव संभावना’ पढ़ने की सलाह भी दी।

मीडिया और पत्रकारिता पर विचार रखते हुए प्रो. द्विवेदी ने कहा कि हर पत्रकार की एक ‘पॉलिटिकल लाइन’ होनी चाहिए, लेकिन किसी पार्टी विशेष से बंधा नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि विचारधारा का होना आवश्यक है, परंतु पार्टी लाइन का होना पत्रकारिता के लिए उचित नहीं है। मोबाइल और डिजिटल माध्यमों के बढ़ते प्रभाव पर उन्होंने कहा कि आज लोग त्वरित जानकारी चाहते हैं, लेकिन किताबों की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। मीडिया साक्षरता को समय की आवश्यकता बताते हुए उन्होंने कहा कि समाज को भ्रमित करने वाली सूचनाओं से बचने के लिए यह अनिवार्य है।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने लेखक को उनके साहित्यिक योगदान के लिए साधुवाद दिया और संस्कृत एवं पालि ग्रंथों के संदर्भ में भगवान बुद्ध के विचारों पर प्रकाश डाला। परिचर्चा का संचालन अधिष्ठाता प्रो. नवीन कुमार मेहता ने किया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव विवेक पाण्डेय ने किया।

सेवा पर्व के अंतर्गत विश्वविद्यालय द्वारा 29 सितंबर को राष्ट्रीय चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित की जाएगी, जिसमें विभिन्न आयु वर्गों के प्रतिभागियों के लिए 7000, 5000 और 3000 रुपये के प्रथम पुरस्कार रखे गए हैं।