सावन के पहले सोमवार उमड़ा शिवभक्तों का सैलाब, रहस्यों से घिरे देवबलोदा मंदिर में लगी लंबी कतारें
13वीं शताब्दी में बना कल्चुरीकालीन शिव मंदिर नागर शैली का अद्भुत उदाहरण, अधूरी संरचना और 'छमासी रात' की कहानी बनी रहस्य
सावन के पहले सोमवार को पूरे अंचल के शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा, लेकिन सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र रहा देवबलोदा का ऐतिहासिक शिव मंदिर, जो रहस्यमयी कथाओं और प्राचीन स्थापत्य के लिए जाना जाता है। यहां सुबह से ही श्रद्धालु कतार में लगे नजर आए।
भिलाई/देवबलोदा। सावन का पहला सोमवार शिवभक्तों के लिए विशेष महत्व रखता है, और इसी अवसर पर दुर्ग जिले के देवबलोदा स्थित प्राचीन शिव मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। यह मंदिर न केवल श्रद्धा का केन्द्र है, बल्कि अपनी रहस्यमयी कथाओं और स्थापत्य शिल्प के लिए भी विख्यात है।
13वीं शताब्दी में कल्चुरी राजाओं द्वारा निर्मित यह मंदिर नागर शैली में बना है और भिलाई-तीन चरोदा रेललाइन के पास स्थित देवबलोदा गांव में है। मंदिर का गर्भगृह लगभग तीन फीट नीचे स्थित है, जहाँ शिवलिंग स्थापित है। भक्तों के अनुसार, यहां दर्शन मात्र से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।
इस मंदिर से जुड़ी कई लोक कथाएँ और रहस्य भी प्रचलित हैं। बताया जाता है कि मंदिर निर्माण के समय इसे बनाने वाला शिल्पी अचानक इसे अधूरा छोड़कर चला गया, जिससे आज भी इसका गुंबद अधूरा है। एक मान्यता के अनुसार मंदिर के पास बना कुंड एक गुप्त सुरंग से आरंग तक जुड़ा हुआ है।
एक दिलचस्प कथा यह भी है कि जब मंदिर का निर्माण हो रहा था, तो छह महीने तक लगातार रात बनी रही थी। हालांकि खगोलशास्त्र में इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता, परंतु माना जाता है कि यह प्रतीकात्मक रूप से निर्माणकाल की लंबी अवधि को दर्शाता है।
इसके अलावा एक अन्य मान्यता के अनुसार मंदिर का शिल्पकार मंदिर निर्माण में इस कदर लीन हो गया था कि उसने कपड़े पहनने तक की सुध नहीं रखी। दिन-रात काम करने के कारण वह नग्न अवस्था में पहुँच गया। एक दिन उसकी पत्नी की जगह किसी अन्य महिला ने उसे इस स्थिति में देख लिया, जिससे शिल्पकार लज्जित होकर मंदिर अधूरा छोड़ गया।
इन रहस्यों और मान्यताओं के चलते यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि आस्था और रहस्य का अनोखा संगम बन चुका है, जिसे देखने के लिए दूर-दराज से लोग सावन में यहां आते हैं।